Sabtu, 23 Februari 2013

[Human Capital] हिंदी स्टोरी अंगूर का दाना पार्ट -४ और ५

 



 
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हिंदी स्टोरी अंगूर का दाना पार्ट -४ और ५
राजू
"चलो अब वाश-बेसिन पर … जल्दी से
ठन्डे पानी से कुल्ली कर लो !" मैंने उसे बाजू से पकड़ कर उठाया और इस तरह
अपने आप से चिपकाए हुए वाशबेसिन की ओर ले गया कि उसका कमसिन बदन मेरे साथ
चिपक ही गया। मैं अपना बायाँ हाथ उसकी बगल में करते हुए उसके उरोजों तक ले
आया। वो तो यही समझती रही होगी कि मैं उसके मुँह की जलन से बहुत परेशान और
व्यथित हो गया हूँ। उसे भला मेरी मनसा का क्या भान हुआ होगा। गोल गोल कठोर
चूचों के स्पर्श से मेरी अंगुलियाँ तो धन्य ही हो गई। वाशबेसिन पर मैंने
उसे अपनी चुल्लू से पानी पिलाया और दो तीन बार उसने कुल्ला किया। उसकी जलन
कुछ कम हो गई। मैंने उसके होंठों को रुमाल से पोंछ दिया। वो तो हैरान हुई
मेरा यह दुलार और अपनत्व देखती ही रह गई। मैंने अगला तीर छोड़ दिया "अंगूर
अब भी जलन हो रही हो तो एक रामबाण इलाज़ और है मेरे पास !"
 
अंगूर का दाना-4
 
"आईईइइ ... सीईईई ?'
"क्या हुआ ?"
"उईईईइ
अम्माआ ...... ये मिर्ची तो बहुत त... ती..... तीखी है ...!" "ओह ... तुम
भी निरी पागल हो भला कोई ऐसे पूरी मिर्ची खाता है ?" "ओह... मुझे क्या पता
था यह इतनी कड़वी होगी मैंने तो आपको देखकर खा ली थी? आईइइ... सीईई ..."
"चलो अब वाश-बेसिन पर ... जल्दी से ठन्डे पानी से कुल्ली कर लो !" मैंने
उसे बाजू से पकड़ कर उठाया और इस तरह अपने आप से चिपकाए हुए वाशबेसिन की ओर
ले गया कि उसका कमसिन बदन मेरे साथ चिपक ही गया। मैं अपना बायाँ हाथ उसकी
बगल में करते हुए उसके उरोजों तक ले आया। वो तो यही समझती रही होगी कि मैं
उसके मुँह की जलन से बहुत परेशान और व्यथित हो गया हूँ। उसे भला मेरी मनसा
का क्या भान हुआ होगा। गोल गोल कठोर चूचों के स्पर्श से मेरी अंगुलियाँ तो
धन्य ही हो गई। वाशबेसिन पर मैंने उसे अपनी चुल्लू से पानी पिलाया और दो
तीन बार उसने कुल्ला किया। उसकी जलन कुछ कम हो गई। मैंने उसके होंठों को
रुमाल से पोंछ दिया। वो तो हैरान हुई मेरा यह दुलार और अपनत्व देखती ही रह
गई। मैंने अगला तीर छोड़ दिया,"अंगूर अब भी जलन हो रही हो तो एक रामबाण
इलाज़ और है मेरे पास !" "वो... क्या ... सीईईईईईईई ?" उसकी जलन कम तो हो
गई थी पर फिर भी वो होले होले सी... सी.... करती जा रही थी। "कहो तो इन
होंठों और जीभ को अपने मुँह में लेकर चूस देता हूँ, जलन ख़त्म हो जायेगी !"
मैंने हंसते हुए कहा। मैं जानता था वो मना कर देगी और शरमा कर भाग जायगी।
पर मेरी हैरानी की सीमा ही नहीं रही जब उसने अपनी आँखें बंद करके अपने होंठ
मेरी ओर बढ़ा दिए। सच पूछो तो मेरे लिए भी यह अप्रत्याशित सा ही था। मेरा
दिल जोर जोर से धड़क रहा था। मैंने देखा उसकी साँसें भी बहुत तेज़ हो गई
हैं। उसके छोटे छोटे गोल गोल उरोज गर्म होती तेज़ साँसों के साथ ऊपर-नीचे
हो रहे थे। मैंने उसके नर्म नाज़ुक होंठों पर अपने होंठ रख दिए। आह ...
उसके रुई के नर्म फोहे जैसे संतरे की फांकों और गुलाब की पत्तियों जैसे
नाज़ुक अधरों की छुअन मात्र से ही मेरा तो तन मन सब अन्दर तक तरंगित ही हो
गया। अचानक उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और मेरे होंठों को चूसने
लगी। मैंने भी दोनों हाथों से उसका सिर थाम लिया और एक दूसरे से चिपके पता
नहीं कितनी देर हम एक दूसरे को चूमते सहलाते रहे। मेरा पप्पू तो जैसे भूखे
शेर की तरह दहाड़ें ही मारने लगा था। मैंने धीरे से पहले तो उसकी पीठ पर
फिर उसके नितम्बों पर हाथ फिराया फिर उसकी मुनिया को टटोलना चाहा। अब उसे
ध्यान आया कि मैं क्या करने जा रहा हूँ। उसने झट से मेरा हाथ पकड़ लिया और
कुनमुनाती सी आवाज में बोली,"उईई अम्मा ...... ओह.... नहीं !... रुको !"वो
कोशिश कर रही थी कि मेरा हाथ उसके अनमोल खजाने तक ना पहुँचे। उसने अपने आप
को बचाने के लिए घूम कर थोड़ा सा आगे की ओर झुका लिया जिसके कारण उसके
नितम्ब मेरे लंड से आ टकराए। वह मेरा हाथ अपनी बुर से हटाने का प्रयास करने
लगी। "क्यों क्या हुआ ?" "ओह्हो... अभी मुझे छोड़िये। मुझे बहुत काम करना
है !" "क्या काम करना है ?" "अभी बर्तन समेटने हैं, आपके लिए दूध गर्म करना
है .... और ... !" "ओह... छोड़ो दूध-वूध मुझे नहीं पीना !" "ओहो ... पर
मुझे आपने दोहरी कर रखा है छोड़ो तो सही !" "अंगूर ... मेरी प्यारी अंगूर
प्लीज ... बस एक बार मुझे अपनी मुनिया देख लेने दो ना ?" मैंने गिड़गिड़ाने
वाले अंदाज़ में कहा। "नहीं मुझे शर्म आती है !" "पर तुमने तो कहा था मैं
जो मांगूंगा तुम मना नहीं करगी ?" "नहीं ... पहले आप मुझे छोड़ो !" मैंने
उसे छोड़ दिया, वो अपनी कलाई दूसरे हाथ से सहलाती हुई बोली,"कोई इतनी जोर
से कलाई मरोड़ता है क्या ?" "कोई बात नहीं ! मैं उसे भी चूम कर ठीक कर देता
हूँ !" कहते हुए मैं दुबारा उसे बाहों में भर लेने को आगे बढ़ा। "ओह...
नहीं नहीं.... ऐसे नहीं ? आपसे तो सबर ही नहीं होता...." "तो फिर ?" "ओह...
थोड़ी देर रुको तो सही ... आप अपने कमरे में चलो मैं वहीं आती हूँ !" मेरी
प्यारी पाठिकाओ और पाठको ! अब तो मुझे जैसे इस जहाँ की सबसे अनमोल दौलत ही
मिलने जा रही थी। जिस कमसिन कलि के लिए मैं पिछले 10-12 दिनों से मरा ही
जा रहा था बस अब तो दो कदम दूर ही रह गई है मेरी बाहों से। हे ... लिंग
महादेव तेरा लाख लाख शुक्र है पर यार अब कोई गड़बड़ मत होने देना। अंगूर
नज़रें झुकाए बिना मेरी ओर देखे जूठे बर्तन उठाने लगी और मैंने ड्राइंग रूम
में रखे टेलीफोन का रिसीवर उतार कर नीचे रख दिया और अपने मोबाइल का स्विच
भी ऑफ कर दिया। मैं किसी प्रकार का कोई व्यवधान आज की रात नहीं चाहता था।
मैं धड़कते दिल से अंगूर का इंतज़ार कर रहा था। मेरे लिए तो एक एक पल जैसे
एक एक पहर की तरह था। कोई 20 मिनट के बाद अंगूर धीरे धीरे कदम बढ़ाती कमरे
में आ गई। उसके अन्दर आते ही मैंने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और उसे फिर
से बाहों में भर कर इतनी जोर से भींचा कि उसकी तो हलकी सी चीख ही निकल गई।
मैंने झट से उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया और उन्हें चूसने लगा। वो
भी मेरे होंठ चूसने लगी। फिर मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी। वो
मेरी जीभ को कुल्फी की तरह चूसने लगी। अब हालत यह थी कि कभी मैं वो मेरी
जीभ चूसने लगती कभी मैं उसकी मछली की तरह फुदकती मचलती जीभ को मुँह में
पूरा भर कर चूसने लगता। "ओह... मेरी प्यारी अंगूर ! मैं तुम्हारे लिए बहुत
तड़पा हूँ !" "अच्छा.... जी वो क्यों ?" "अंगूर, तुमने अपनी मुनिया दिखाने
का वादा किया था !" "ओह ... अरे... वो ... नहीं... मुझे शर्म आती है !"
"देखो तुम मेरी प्यारी साली हो ना ?" मैंने घाघरे के ऊपर से ही उसकी मुनिया
को टटोला। "नहीं... नहीं ऐसे नहीं ! पहले आप यह लाईट बंद कर दो !" "ओह,
फिर अँधेरे में मैं कैसे देखूंगा ?" "ओह्हो... आप भी... अच्छा तो फिर आप
अपनी आँखें बंद कर लो !" "तुम भी पागल तो नही हुई ? अगर मैंने अपनी आँखें
बंद कर ली तो फिर मुझे क्या दिखेगा ?" "ओह्हो ... अजीब मुसीबत है ...?"
कहते हुए उसने अपने हाथों से अपना चेहरा ही ढक लिया। यह तो उसकी मौन
स्वीकृति ही थी मेरे लिए। मैंने होले से उसे बिस्तर पर लेटा सा दिया। पर
उसने तो शर्म के मारे अपने हाथों को चेहरे से हटाया ही नहीं। उसकी साँसें
अब तेज़ होने लगी थी और चेहरे का रंग लाल गुलाब की तरह हो चला था। मैंने
हौले से उसका घाघरा ऊपर कर दिया। मेरे अंदाज़े के मुताबिक़ उसने कच्छी
(पेंटी) तो पहनी ही नहीं थी।
उफ्फ्फ्फ़ ......
उस जन्नत के नज़ारे को
तो मैं जिन्दगी भर नहीं भूल पाऊंगा। मखमली गोरी जाँघों के बीच हलके रेशमी
घुंघराले काले काले झांटों से ढकी उसकी चूत की फांकें एक दम गुलाबी थी।
मेरे अंदाज़े के मुताबिक़ चीरा केवल 3 इंच का था। दोनों फांकें आपस में
जुड़ी हुई ऐसे लग रही थी जैसे किसी तीखी कटार की धार ही हो। बीच की रेखा तो मुश्किल से 3 सूत चौड़ी ही होगी एक दम कत्थई रंग की। मैं तो फटी आँखों से
उसे देखता ही रह गया। हालांकि अंगूर मिक्की से उम्र में थोड़ी बड़ी थी पर
उन दोनों की मुनिया में रति भर का भी फर्क नहीं था। मैं अपने आप को कैसे
रोक पता मैंने अपने जलते होंठ उन रसभरी फांकों पर लगा दिए। मेरी गर्म
साँसें जैसे ही उसे अपनी मुनिया पर महसूस हुई उसकी रोमांच के मारे एक
किलकारी ही निकल गई और उसके पैर आपस में जोर से भींच गए। उसका तो सारा शरीर ही जैसे कांपने लगा था। मेरी भी कमोबेश यही हालत थी। मेरे नथुनों में हलकी पेशाब, नारियल पानी और गुलाब के इत्र जैसी सोंधी-सोंधी खुशबू समा गई। मुझे पता है वो जरूर बॉडी स्प्रे लगा कर आई होगी। उसने जरूर मधु को कभी ऐसा
करते देखा होगा। मैंने उसकी मुनिया पर एक चुम्बन ले लिया। चुम्बन लेते समय
मैं यह सोच रहा था कि अगर अंगूर इन बालों को साफ़ कर ले तो इस छोटी सी
मुनिया को चूसने का मज़ा ही आ जाए। मैं अभी उसे मुँह में भर लेने की सोच ही रहा था कि उसके रोमांच में डूबी आवाज मेरे कानों में पड़ी,"ऊईइ .....
अम्माआआ ..." वो झट से उठ खड़ी हुई और उसने अपने घाघरे को नीचे कर लिया।
मैंने उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा,"अंगूर तुम बहुत खूबसूरत हो !" पहले तो उसने मेरी ओर हैरानी से देखा फिर ना जाने उसे क्या सूझा, उसने मुझे
अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और मुझ से लिपट ही गई। मैं पलंग पर अपने
पैर मोड़ कर बैठा था। वो अपने दोनों पैर चौड़े करके मेरी गोद में बैठ गई।
जैसे कई बार मिक्की बैठ जाया करती थी। मेरा खड़ा लंड उसके गोल गोल नर्म
नाज़ुक कसे नितम्बों के बीच फस कर पिसने लगा। मैंने एक बार फिर से उसके
होंठों को चूमना चालू कर दिया तो उसकी मीठी सित्कारें निकालने लगी। "अंगूर
...?" "हम्म्म ... ?" "कैसा लग रहा है ?" "क्या ?" उसने अपनी आँखें नचाई तो मैंने उसके होंठों को इतने जोर से चूसा कि उसकी तो हल्की सी चीख ही निकल
गई। पहले तो उसने मेरे सीने पर अपने दोनों हाथों से हलके से मुक्के लगाए और फिर उसने मेरे सीने पर अपना सिर रख दिया। अब मैं कभी उसकी पीठ पर हाथ
फिराता और कभी उसके नितम्बों पर। "अंगूर तुम्हारी मुनिया तो बहुत खूबसूरत
है !" "धत्त ... !" वह मदहोश करने वाली नज़रों से मुझे घूरती रही। "अंगूर
तुम्हें इस पर बालों का यह झुरमुट अच्छा लगता है क्या ?" "नहीं .... अच्छा
तो नहीं लगता... पर...?" "तो इनको साफ़ क्यों नहीं करती ?" "मुझे क्या पता
कैसे साफ़ किये जाते हैं ?" "ओह ... क्या तुमने कभी गुलाबो या अनार को करते नहीं देखा...? मेरा मतलब है... वो कैसे काटती हैं ?" "अम्मा तो कैंची से
या कभी कभी रेज़र से साफ़ करती है।" "तो तुम भी कर लिया करो !" "मुझे डर
लगता है !" "डर कैसा ?" "कहीं कट गया तो ?" "तो क्या हुआ मैं उसे भी चूस कर ठीक कर दूंगा !" मैं हंसने लगा। पहले तो वो समझी नहीं फिर उसने मुझे
धकेलते हुए कहा,"धत्त ... हटो परे...!" "अंगूर प्लीज आओ मैं तुम्हें इनको
साफ़ करना सिखा देता हूँ। फिर तुम देखना इसकी ख़ूबसूरती में तो चार चाँद ही लग जायेंगे ?" "नहीं मुझे शर्म आती है ! मैं बाद में काट लूंगी।" "ओहो ... अब यह शर्माना छोड़ो ... आओ मेरे साथ !" मैं उसे अपनी गोद में उठा लिया और हम बाथरूम में आ गए। बाथरूम उस कमरे से ही जुड़ा है और उसका एक दरवाजा
अन्दर से भी खुलता है। मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओ ! आप जरूर सोच रहे
होंगे यार प्रेम गुरु तुम भी अजीब अहमक इंसान हो ? लौंडिया चुदने को तैयार
बैठी है और तुम्हें झांटों को साफ़ करने की पड़ी है। अमा यार ! अब ठोक भी
दो साली को ! क्यों बेचारी की मुनिया और अपने खड़े लंड को तड़फा रहे हो ?
आप अपनी जगह सही हैं। मैं जानता हूँ यह कथानक पढ़ते समय पता नहीं आपका लंड
कितनी बार खड़ा हुआ होगा या इस दौरान आपके मन में मुट्ठ मार लेने का ख़याल
आया होगा और मेरी प्यारी पाठिकाएं तो जरूर अपनी मुनिया में अंगुली कर कर के परेशान ही हो गई होंगी। पर इतनी देरी करने का एक बहुत बड़ा कारण था। आप
मेरा यकीन करें और हौंसला रखें बस थोड़ा सा इंतज़ार और कर लीजिये। मैं और
आप सभी साथ साथ ही उस स्वर्ग गुफा में प्रवेश करने का सुख, सौभाग्य, आनंद
और लुफ्त उठायेगे और जन्नत के दूसरे दरवाजे का भी उदघाटन करेंगे। दरअसल मैं उसके कमसिन बदन का लुत्फ़ आज ठन्डे पानी के फव्वारे के नीचे उठाना चाहता
था। वैसे भी भरतपुर में गर्मी बहुत ज्यादा ही पड़ती है। आप तो जानते ही हैं मैं और मधुर सन्डे को साथ साथ नहाते हैं और बाथटब में बैठे घंटों एक दूसरे के कामांगों से खेलते हुए चुहलबाज़ी करते रहते हैं। कभी कभी तो मधुर इतनी
उत्तेजित चुलबुली हो जाया करती है कि गांड भी मरवा लेती है। पर इन दिनों
में मधुर के साथ नहाना और गांड मारना तो दूर की बात है वो तो मुझे चुदाई के लिए भी तरसा ही देती है। आज इस कमसिन बला के साथ नहा कर मैं फिर से अपनी
उन सुनहरी यादों को ताज़ा कर लेना चाहता था। बाथरूम में आकर मैंने धीरे से
अंगूर को गोद से उतार दिया। वो तो मेरे साथ ऐसे चिपकी थी जैसे कोई लता किसी पेड़ से चिपकी हो। वो तो मुझे छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। मैंने
कहा,"अंगूर तुम अपने कपड़े उतार दो ना प्लीज ?" "वो ... क्यों भला ...?"
"अरे बाबा मुनिया की सफाई नहीं करवानी क्या ?" "ओह ... !" उसने अपने हाथों
से अपना मुँह फिर से छुपा लिया। मैंने आगे बढ़ कर उसके घाघरे का नाड़ा खोल
दिया और फिर उसकी कुर्ती भी उतार दी। आह... ट्यूब लाईट की दूधिया रोशनी में उसका सफ्फाक बदन तो कंचन की तरह चमक रहा था। उसने एक हाथ अपनी मुनिया पर
रख लिया और दूसरे हाथ से अपने छोटे छोटे उरोजों को छुपाने की नाकाम सी
कोशिश करने लगी। मैं तो उसके इस भोलेपन पर मर ही मिटा। उसके गोल गोल गुलाबी रंग के उरोज तो आगे से इतने नुकीले थे जैसे अभी कोई तीर छोड़ देंगे। मुझे
एक बात की बड़ी हैरानी थी कि उसकी मुनिया और कांख (बगल) को छोड़ कर उसके
शरीर पर कहीं भी बाल नहीं थे। आमतौर पर इस उम्र में लड़कियों के हाथ पैरों
पर भी बाल उग आते हैं और वो उन्हें वैक्सिंग से साफ़ करना चालू कर देती
हैं। पर कुछ लड़कियों के चूत और कांख को छोड़ कर शरीर के दूसरे हिस्सों पर
बाल या रोयें बहुत ही कम होते हैं या फिर होते ही नहीं। अब आप इतने भोले भी नहीं हैं कि आपको यह भी बताने कि जरूरत पड़े कि वो तो हुश्न की मल्लिका ही थी उसके शरीर पर बाल कहाँ से होते। मैं तो फटी आँखों से सांचे में ढले इस
हुस्न के मंजर को बस निहारता ही रह गया। "वो... वो ... ?" "क्या हुआ ?"
"मुझे सु सु आ रहा है ?" "तो कर लो ! इसमें क्या हुआ ?" "नहीं आप बाहर जाओ
... मुझे आपके सामने करने में शर्म आती है !" "ओह्हो ... अब इसमें शर्म की
क्या बात है ? प्लीज मेरे सामने ही कर लो ना ?" वो मुझे घूरती हुई कमोड पर
बैठने लगी तो मैंने उसे रोका,"अर्ररर ... कमोड पर नहीं नीचे फर्श पर बैठ कर ही करो ना प्लीज !" उसने अजीब नज़रों से मुझे देखा और फिर झट से नीचे बैठ
गई। उसने अपनी जांघें थोड़ी सी फैलाई और फिर उसकी मुनिया के दोनों पट थोड़े से खुले। पहले 2-3 बूँदें निकली और उसकी गांड के छेद से रगड़ खाती नीचे
गिर गई। फिर उसकी फांकें थरथराने लगी और फिर तो पेशाब की कल-कल करती धारा
ऐसे निकली कि उसके आगे सहस्त्रधारा भी फीकी थी। उसकी धार कोई एक डेढ़ फुट
ऊंची तो जरूर गई होगी। सु सु की धार इतनी तेज़ थी कि वो लगभग 3 फुट दूर तक
चली गई। उसकी बुर से निकलती फ़ीच... च्चच..... सीईई इ ....... का सिसकारा
तो ठीक वैसा ही था जैसा लिंग महादेव मंदिर से लौटते हुए मिक्की का था। हे
भगवान् ! क्या मिक्की ही अंगूर के रूप में कहीं दुबारा तो नहीं आ गई ? मैं
तो इस मनमोहक नज़ारे को फटी आँखों से देखता ही रह गया। मुझे अपनी बुर की ओर देखते हुए पाकर उसने अपना सु सु रोकने की नाकाम कोशिश की पर वो तो एक बार
थोड़ा सा मंद होकर फिर जोर से बहने लगा। आह एक बार वो धार नीचे हुई फिर जोर से ऊपर उठी। ऐसे लगा जैसे उसने मुझे सलामी दी हो।शादी के शुरू शुरू के
दिनों में मैं और मधुर कई बार बाथरूम में इस तरह की चुहल किया करते थे। मधु अपनी जांघें चौड़ी करके नीचे फर्श पर लेट जाया करती थी और फिर मैं उसकी
मुनिया की दोनों फांकों को चौड़ा कर दिया करता था। फिर उसकी मुनिया से सु
सु की धार इतनी तेज़ निकलती कि 3 फुट ऊपर तक चली जाती थी। आह ... कितनी
मधुर सीटी जैसी आवाज निकलती थी उसकी मुनिया से। मैं अपने इन ख़यालों में
अभी खोया ही था कि अब उसकी धार थोड़ी मंद पड़ने लगी और फिर एक बार बंद होकर फिर एक पतली सी धार निकली। उसकी लाल रंग की फांके थरथरा रही थी जैसे। कभी
संकोचन करती कभी थोड़ी सी खुल जाती। अंगूर अब खड़ी हो गई। मैंने आगे बढ़ कर उसकी मुनिया को चूमना चाहा तो पीछे हटते हुए बोली,"ओह ... छी .... छी .... ये क्या करने लगे आप ?" "अंगूर एक बार इसे चूम लेने दो ना प्लीज .... देखो कितनी प्यारी लग रही है !" "छी .... छी .... इसे भी कोई चूमता है ?" मैंने अपने मन में कहा 'मेरी जान थोड़ी देर रुक जाओ फिर तो तुम खुद कहोगी कि 'और जोर से चूमो मेरे साजन' पर मैंने उससे
कहा,"चलो कोई बात नहीं तुम अपना एक
पैर कमोड पर रख लो। मैं तुम्हारे इस घास की सफाई कर देता हूँ !" उसने थोड़ा सकुचाते हुए बिना ना-नुकर के इस बार मेरे कहे मुताबिक़ एक पैर कमोड पर रख
दिया। आह ... उसकी छोटी सी बुर और 3 इंच का रक्तिम चीरा तो अब साफ़ नज़र
आने लगा था। हालांकि उसकी फांकें अभी भी आपस में जुड़ी हुई थी पर उनका
नज़ारा देख कर तो मेरे पप्पू ने जैसे उधम ही मचा दिया था। मैंने अपने
शेविंग किट से नया डिस्पोजेबल रेज़र निकला और फिर हौले-हौले उसकी बुर पर
फिराना चालू कर दिया। उसे शायद कुछ गुदगुदी सी होने लगी थी तो वो थोड़ा
पीछे होने लगी तो मैंने उसे समझाया कि अगर हिलोगी तो यह कट जायेगी फिर मुझे दोष मत देना। उसने मेरा सिर पकड़ लिया। उसकी बुर पर उगे बाल बहुत ही नर्म
थे। लगता था उसने कमरे में आने से पहले पानी और साबुन से अपनी मुनिया को
अच्छी तरह धोया था। 2-3 मिनट में ही मुनिया तो टिच्च ही हो गई। आह ... उसकी मोटी मोटी फांकें तो बिलकुल संतरे की फांकों जैसी एक दम गुलाबी लग रही थी। फिर मैंने उसके बगलों के बाल भी साफ़ कर दिए। बगलों के बाल थोड़े से तो
थे। जब बाल साफ़ हो गए तो मैंने शेविंग-लोशन उसकी मुनिया पर लगा कर हैण्ड
शावर उठाया और उसकी मुनिया को पानी की हल्की फुहार से धो दिया। फिर पास रखे तौलिये से उसकी मुनिया को साफ़ कर दिया। इस दौरान मैं अपनी एक अंगुली को
उसकी मुनिया के चीरे पर फिराने से बाज नहीं आया। जैसे ही मेरी अंगुली उसकी
मुनिया से लगी वो थोड़ी सी कुनमुनाई। "ऊईईइ.... अम्माआ ....!" "क्या हुआ ?" "ओह ... अब मेरे कपड़े दे दो ....!" उसने अपने दोनों हाथ फिर से अपनी
मुनिया पर रख लिए। "क्यों ?" "ओह ... आपने तो मुझे बेशर्म ही बना दिया !"
"वो कैसे ?" "और क्या ? आपने तो सारे कपड़े पहन रखे हैं और मुझे बिलकुल
नंगा ....?" वह तो बोलते बोलते फिर शरमा ही गई ...... "अरे मेरी भोली बन्नो ... इसमें क्या है, लो मैं भी उतार देता हूँ।" मैंने अपना कुरता और पजामा
उतार फेंका। अब मेरे बदन पर भी एक मात्र चड्डी ही रह गई थी। मैंने अपनी
चड्डी जानबूझ कर नहीं उतारी थी। मुझे डर था कहीं मेरा खूंटे सा खड़ा लंड
देख कर वो घबरा ही ना जाए और बात बनते बनते बिगड़ जाए। मैं इस हाथ आई मछली
को इस तरह फिसल जाने नहीं देना चाहता था। मेरा पप्पू तो किसी खार खाए नाग
की तरह अन्दर फुक्कारें ही मार रहा था। मुझे तो लग रहा था अगर मैंने चड्डी
नहीं उतारी तो यह उसे फाड़ कर बाहर आ जाएगा। "उईइ ... यह तो चुनमुनाने लगी
है ?" उसने अपनी जांघें कस कर भींच ली। शायद कहीं से थोड़ा सा कट गया था जो शेविंग-लोशन लगने से चुनमुनाने लगा था। "कोई बात नहीं इसका इलाज़ भी है
मेरे पास !" उसने मेरी ओर हैरानी से देखा। मैं नीचे पंजों के बल बैठा गया
और एक हाथ से उसके नितम्बों को पकड़ कर उसे अपनी और खींच लिया और फिर मैंने झट से उसकी मुनिया को अपने मुँह में भर लिया। वो तो,"उईइ इ ... ओह
......... नहीं .... उईईईई इ .... क्या कर रहे हो ... आह ..........." करती ही रह गई। मैंने जैसे ही एक चुस्की लगाई उसकी सीत्कार भरी किलकारी निकल
गई। उसकी बुर तो अन्दर से गीली थी। नमकीन और खट्टा सा स्वाद मेरी जीभ से लग गया। उसकी कुंवारी बुर से आती मादक महक से मैं तो मस्त ही हो गया। उसने
अपने दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़ लिया। अब मैंने अपनी जीभ को थोड़ा सा
नुकीला बनाया और उसकी फांकों के बीच में लगा कर ऊपर नीचे करने लगा। मेरे
ऐसा करने से उसे रोमांच और गुदगुदी दोनों होने लगे। मैंने अपने एक हाथ की
एक अंगुली उसकी मुनिया के छेद में होले से डाल दी। आह उसकी बुर के कसाव और
गर्मी से मेरी अंगुली ने उसकी बुर के कुंवारेपन को महसूस कर ही लिया। "ईईइ
..... बाबू ... उईईइ ... अम्मा ........ ओह ... रुको ... मुझे ... सु सु
.... आ ... रहा है .... ऊईइ ... ओह ... छोड़ो मुझे.... ओईईइ ... अमाआआ .... अह्ह्ह .... य़ाआअ ..... !!"
अंगूर का दाना-5
उसने मेरी ओर हैरानी से देखा। मैं
नीचे पंजों के बल बैठा गया और एक हाथ से उसके नितम्बों को पकड़ कर उसे अपनी और खींच लिया और फिर मैंने झट से उसकी मुनिया को अपने मुँह में भर लिया।
वो तो,"उईइ इ ... ओह ......... नहीं .... उईईईई इ .... क्या कर रहे हो ...
आह ..........." करती ही रह गई। मैंने जैसे ही एक चुस्की लगाई उसकी सीत्कार भरी किलकारी निकल गई। उसकी बुर तो अन्दर से गीली थी। नमकीन और खट्टा सा
स्वाद मेरी जीभ से लग गया। उसकी कुंवारी बुर से आती मादक महक से मैं तो
मस्त ही हो गया। उसने अपने दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़ लिया। अब मैंने
अपनी जीभ को थोड़ा सा नुकीला बनाया और उसकी फांकों के बीच में लगा कर ऊपर
नीचे करने लगा। मेरे ऐसा करने से उसे रोमांच और गुदगुदी दोनों होने लगे।
मैंने अपने एक हाथ की एक अंगुली उसकी मुनिया के छेद में हौले से डाल दी। आह उसकी बुर के कसाव और गर्मी से मेरी अंगुली ने उसकी बुर के कुंवारेपन को
महसूस कर ही लिया। "ईईइ ..... बाबू ... उईईइ ... अम्मा ........ ओह ...
रुको ... मुझे ... सु सु .... आ ... रहा है .... ऊईइ ... ओह ... छोड़ो
मुझे.... ओईईइ ... अमाआआ .... अह्ह्ह .... य़ाआअ ..... !!" मैं जानता था वो उत्तेजना और रोमांच के उच्चतम शिखर पर पहुँच गई है, बस अब वो झड़ने के
करीब है। वह उत्तेजना के मारे कांपने सी लगी थी। उसने अपनी जांघें थोड़ी सी चौड़ी कर ली और मेरे सिर को कस कर पकड़ लिया। मैंने अपनी जीभ ऊपर से नीचे
तक उसकी कटार सी पैनी फांकों पर फिराई और फिर अपनी जीभ को नुकीला बना कर
उसके दाने को टटोला। मेरा अंदाज़ा था कि वो दाना (मदनमणि) अब फूल कर जरूर
किशमिश के दाने जितना हो गया होगा। जैसे ही मैंने उस पर अपनी नुकीली जीभ
फिराई उसका शरीर कुछ अकड़ने सा लगा। उसने मेरे सिर के बालों को जोर से पकड़ लिया और मेरे सिर को अपनी बुर की ओर दबा दिया। मैंने फिर से उसकी बुर को
चूसना चालू कर दिया। उसने 2-3 झटके से खाए और मेरा मुँह फिर से खट्टे मीठे
नमकीन से स्वाद वाले रस से भर गया। वो तो बस आह ... ऊँह... करती ही रह गई।
मैं अपने होंठों पर जुबान फेरता उठ खड़ा हुआ। मैं जैसे ही खड़ा हुआ अंगूर
उछल कर मेरे गले से लिपट गई। उसने मेरे गले में बाहें डाल दी और अपने पंजों के बल होकर मेरे होंठों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। वो तो इस कदर
बावली सी हुई थी कि बस बेतहाशा मेरे होंठों को चूमे ही जा रही थी। मेरे लंड ने तो चड्डी के अन्दर कोहराम ही मचा दिया था। अब उस चड्डी को भी निकाल
फेंकने का वक़्त आ गया था। मैंने एक हाथ से अपनी चड्डी निकाल फेंकी और फिर
उसे अपनी बाहों में कस लिया। मेरा लंड उसकी बुर के थोड़ा ऊपर जा लगा। जैसे
ही मेरा लंड उसकी बुर के ऊपरी हिस्से से टकराया वो थोड़ा सा उछली। मैंने
उसे कमर से पकड़ लिया। मुझे डर था वो कहीं मेरे खड़े लंड का आभास पाकर दूर
ना हट जाए पर वो तो उछल उछल कर मेरी गोद में ही चढ़ गई। उसने अपने पैरों की कैंची सी बना कर मेरी कमर के गिर्द लपेट ली। मेरा लंड उसके नितम्बों की
खाई में फंस गया। वो तो आँखें बंद किये किसी असीम अनंत आनंद की दुनिया में
ही गोते लगा रही थी। मैं उसे अपने से लिपटाए हुए शावर के नीचे आ गया। जैसे
ही मैंने शावर चालू किया पानी की हल्की फुहार हमारे नंगे जिस्म पर पड़ने
लगी। मैंने अपना मुँह थोड़ा सा नीचे किया और उसके एक उरोज को मुँह में ले
लिया। उसके चुचूक तो इतने कड़े ही गए थे जैसे कोई चने का दाना ही हो। मैंने पहले तो अपनी जीभ को गोल गोल घुमाया और फिर उसे किसी हापूस आम की तरह
चूसने लगा। मैं सोच रहा था कि अब अंगूर चुदाई के लिए पूरी तरह तैयार हो गई
है। अब इसे गंगा स्नान करवाने में देर नहीं करनी चाहिए। पहले तो मैं सोच
रहा था कि इसे बाहर सोफे पर ले जाकर इसे पवित्र किया जाए। मैं पहले सोफे पर बैठ जाऊँगा और फिर इसे नंगा ही अपनी गोद में बैठा लूँगा। और फिर इसे थोड़ा सा ऊपर करके धीरे धीरे इसकी बुर में अपना लंड डालूँगा। पर अब मैं सोच रहा
था कि इसे उल्टा घुमा कर दीवार के सहारे खड़ा कर दूँ और पीछे से अपना लंड
इसकी कमसिन बुर में डाल दूँ। पर मैंने अपना इरादा बदल दिया। दरअसल मैं पहले थोड़ा उसके छोटे छोटे आमों को चूस कर उसे पूरी तरह कामोत्तेजित करके ही
आगे बढ़ना चाहता था। उसने अपना सिर पीछे की ओर झुका सा लिया था। ऐसा करने
से उसका शरीर कमान की तरह तन सा गया और उसके उरोज तीखे हो गए। मैंने एक हाथ से उसकी कमर पकड़ रखी थी और दूसरे हाथ से उसके नितम्बों को सहलाने लगा।
अचानक मेरी एक अंगुली उसकी गांड के छेद से जा टकराई। उसकी दरदराई सिलवटों
का अहसास पाते ही मेरे लंड ने तो ठुमके ही लगाने शुरू कर दिए। मैंने अपनी
अंगुली थोड़ी सी अन्दर करने की कोशिश की तो वो तो उछल ही पड़ी। शायद उसे डर था मैं अपनी अंगुली पूरी की पूरी उसकी गांड में डाल दूंगा। वह कसमसाने सी
लगी पर मैंने अपनी गिरफ्त और कड़ी कर ली। मेरी मनसा भांप कर उसने मेरी छाती पर हौले हौले मुक्के लगाने चालू कर दिए। मैं थोड़ा सा नीचे झुक कर उसको
गोद में लिए ही दीवाल के सहारे गीले फर्श पर बैठ गया। पर वो कहाँ रुकने
वाली थी उसने मुझे धक्का सा दिया जिस के कारण मैं गीले फर्श पर लगभग गिर सा पड़ा। वो अपना गुस्सा निकालने के लिए मेरे ऊपर ही लेट गई और मेरे पेट पर
अपनी बुर को रगड़ने लगी। ऐसा करने से मेरा लंड कभी उसकी गांड के छेद से
टकराता और कभी उसके नितम्बों की खाई में रगड़ खाने लगता। उसे तो दोहरा मज़ा आने लगा था। लगता था उसकी बुर ने एक बार फिर से पानी छोड़ दिया था। उसने
नीचे झुक कर मेरे होंठों को इतना जोर से काटा कि मुझे लगा उनमें खून ही
निकल आएगा। अब उसकी स्वर्ग गुफा में प्रवेश के मुहूर्त का शुभ समय नजदीक आ
गया था। अचानक अंगूर अपने घुटने मोड़ कर थोड़ी सी ऊपर उठी और मेरे लंड को
पकड़ कर मसलने लगी। अब उसने एक हाथ से अपनी बुर की फांकों को चौड़ा किया और मेरे लंड को अपनी बुर के छेद से लगा लिया। उसने एक जोर का सांस लिया और
फिर गच्च से मेरे ऊपर बैठ गई। मेरे लिए तो यह अप्रत्याशित ही था। मेरा लंड
उसकी नर्म नाज़ुक चूत की झिल्ली को फाड़ता हुआ अन्दर समां गया जैसे किसी
म्यान में कटार घुस जाती है। अंगूर की एक हल्की दर्द भरी चीख निकल गई।
"ऊईईइ ...... अम्माआआअ ............"
उसकी
आँखों से आंसू निकालने लगे। मुझे लगा मेरे लंड के चारों ओर कुछ गर्म गर्म
तरल द्रव्य सा लग गया है। जरूर यह तो अंगूर की कमसिन बुर की झिल्ली फटने से
निकला खून ही होगा। कुछ देर वो ऐसे ही आँखें बंद किये चुपचाप मेरे लंड पर
बैठी रही। उसका पूरा शरीर ही काँप रहा था। फिर उसने नीचे होकर मेरे सीने पर
अपना सिर रख दिया। मैं उसकी हालत अच्छी तरह जानता था। वो किसी तरह अपना
दर्द बर्दाश्त करने की कोशिश कर रही थी। मैंने एक हाथ से उसका सिर और दूसरे
हाथ से उसकी पीठ सहलानी शुरू कर दी। "ओह ... अंगूर मेरी रानी, तुम्हें ऐसा
इतनी जल्दी नहीं करना चाहिए था !" मुझे क्या पता था कि इतना दर्द होगा !"
उसने थोड़ा सा उठने की कोशिश की। मुझे लगा अगर एक बार मेरा लंड उसकी बुर से
बाहर निकल गया तो फिर दुबारा वो इसे किसी भी सूरत में अन्दर नहीं डालने
देगी। मेरी तो की गई सारी मेहनत और लम्बी तपस्या ही बेकार चली जायेगी।
मैंने कस कर उसकी कमर पकड़ ली और उसके माथे को चूमने लगा। "ओह ... चलो अब
अन्दर चला ही गया है, बस अब थोड़ी देर में दर्द भी ख़त्म हो जाएगा !" "ओह
... नहीं आप इसे बाहर निकाल लो मुझे बहुत दर्द हो रहा है !" अजीब समस्या
थी। किसी तरह इसे 2-4 मिनट और रोकना ही होगा। अगर 3-4 मिनट यह इसे अन्दर
लिए रुक गई तो बाद में तो इसे भी मज़ा आने लगेगा। बस इसका ध्यान बटाने की
जरूरत है। मैंने उसे पूछा "अंगूर मैंने तुम्हें वो कलाई वाली घड़ी लेकर दी
थी वो तो तुम पहनती ही नहीं ?" "ओह ... वो ... वो मैंने अपनी संदूक में
संभाल कर रख छोड़ी है !" "क्यों ? वो तो तुम्हें बहुत पसंद थी ना ? तुम
पहनती क्यों नहीं ?" "ओह ... आप भी .... अगर दीदी को पता चल गया तो ?"
"ओह्हो ... तुम तो बड़ी सयानी हो गई हो ?" "यह सब आपने ही तो सिखाया है !"
उसके चहरे पर थोड़ी मुस्कान खिल उठी। और फिर उसने शरमा कर अपनी आँखें बंद
कर ली। मैं अपने मकसद में कामयाब हो चुका था। मैंने उसका चेहरा थोड़ा सा
ऊपर उठाया और उसके होंठों को अपने मुँह में लेकर चूसना चालू कर दिया। अब तो
उसकी भी मीठी सीत्कार निकालने लगी थी। उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी
तो मैंने उसे चूसना चालू कर दिया। अब तो कभी मैं अपनी जीभ उसके मुँह में
डाल देता कभी वो। थोड़ी देर बाद उसने अपना एक उरोज फिर से मेरे मुँह से लगा
दिया और मैंने उसके किशमिश के दाने जितने चुचूक चूसना चालू कर दिया।
"अंगूर तुम बहुत खूबसूरत हो !" "आप भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो !" कहते हुए
उसने हौले से अपने नितम्ब थोड़े से ऊपर उठा कर एक धक्का लगा दिया। थोड़ी
देर बाद तो उसने लगातार धक्के लगाने चालू कर दिए। अब तो वो मीठी सीत्कार भी
करने लगी थी। यह तो सच था कि उसकी यह पहली चुदाई थी पर मुझे लगता है वह
चुदाई के बारे में बहुत कुछ जानती है। जरूर उसने किसी ना किसी को चुदाई
करते हुए देखा होगा। "अंगूर अब मज़ा आ रहा है ना ?" "हाँ बाबू ... बहुत
मज़ा आ रहा है। आप ऊपर आकर नहीं करोगे क्या ?" मेरी तो मन मांगी मुराद ही
पूरी हो गई थी। मैंने उसकी कमर पकड़ी और धीरे से पलटी मारते हुए उसे अपने
नीचे कर लिया। अब मैंने भी अपने घुटने मोड़ लिए और कोहनियों के बल हो गया
ताकि मेरा पूरा वजन उस पर नहीं पड़े। अब मैंने हौले हौले धक्के लगाने चालू
कर दिए। उसकी बुर तो अब बिलकुल गीली हो कर रवां हो गई थी। शायद वो इस दौरान
फिर से झड़ गई थी। मैंने उसके उरोजों को फिर से मसलना और चूसना चालू कर
दिया। हमारे शरीर पर ठण्डे ठण्डे पानी की फुहारें पड़ रही थी। और हम दोनों
ही इस दुनिया के उस अनोखे और अलौकिक आनंद में डूबे थे जिसे चुदाई नहीं
प्रेम मिलन कहा जाता है। "बाबू एक बात बताऊँ ?" "क्या ?" "तुम जब मेरी
चूचियों को मसलते हो और चूसते हो तो बड़ा मजा आता है !" "मैं समझा नहीं
कैसे ?" "वो ... वो... एक बार ...?" कहते कहते अंगूर चुप हो गई। "बताओ ना
?" "वो... एक बार जीजू ने मेरे इतने जोर से दबा दिए थे कि मुझे तो 3-4 दिन
तक दर्द होता रहा था ?" "अरे वो कैसे ?" "जब अनार दीदी के बच्चा होने वाला
था तब मैं उनके यहाँ गई थी। मुझे अकेला पाकर जीजू ने मुझे दबोच लिया और
मेरे चूचे दबा दिए। वो तो.... वो तो.... मेरी कच्छी के अन्दर भी हाथ डालना
चाहता था पर मैंने जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया तो अनार दीदी आ गई !"
"फिर ?" "फिर क्या दीदी ने मुझे छुटाया और जीजू को बहुत भला बुरा कहा !"
"ओह ..... ?" "एक नंबर का लुच्चा है वो तो !" "अंगूर उसका दोष नहीं है तुम
हो ही इतनी खूबसूरत !" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और एक धक्का जोर से लगा
दिया। "ऊईईई .... अमाआआ .... जरा धीरे करो ना ?" "अंगूर तुम्हारे उरोज छोटे
जरूर हैं पर बहुत खूबसूरत हैं !" "क्या आपको मोटे मोटे उरोज पसंद हैं ?"
"उ... न .... नहीं ऐसी बात तो नहीं है !" "पता है गौरी मेरे से दो साल छोटी
है पर उसके तो मेरे से भी बड़े हैं !" "अरे वाह उसके इतने बड़े कैसे हो गए
?" "वो... वो कई बार मोती रात को उसके दबाता है और मसलता भी है !" "कौन
मोती ?" "ओह ... आप भी ... वो मेरा छोटा भाई है ना ?"
"ओह ... अच्छा ?" "आप जब इन्हें मसलते हो और इनकी घुंडियों को दांतों से
दबाते हो तो मुझे बहुत अच्छा लगता है !" "हुं..." अब मैंने उसके उरोजों की
घुंडियों को अपने दांतों से दबाना चालू कर दिया तो उसकी मीठी सीत्कारें
निकलने लगी। फिर मैंने उसके उरोजों की घाटी और गले के नीचे से फिर से चूसना
चालू कर दिया तो उसने भी उत्तेजना के मारे सीत्कार करना चालू कर दिया। अब
मैंने अपने पैर सीधे कर दिए तो उसने अपने पैर मेरे कूल्हों के दोनों और
करके ऊपर उठा लिए और मेरी कमर के गिर्द लपेट लिए। अब धक्के लगाने से उसके
नितम्ब नीचे फर्श पर लगने लगे। उसे ज्यादा दर्द ना हो इसलिए मैंने बंद कर
दिए और अपने लंड को उसकी बुर पर रगड़ने लगा। मेरे छोटे छोटे नुकीले झांट
उसकी बुर की फांकों से रगड़ खाते और मेरे लंड का कुछ भाग अन्दर बाहर होते
समय उसकी मदनमणि को भी रगड़ता। मैं जानता था ऐसा करने से वो जल्दी ही फिर
से चरम उत्तेजना के शिखर पर पहुँच जायेगी और उसकी बुर एक बार फिर मीठा
सफ़ेद शहद छोड़ देगी। अब उसने अपने पैरों की कैंची खोल दी और अपनी जांघें
जितना चौड़ी कर सकती थी कर दी। वो तो सीत्कार पर सीत्कार करने लगी थी और
अपने नितम्बों को फिर से उछालने लगी थी। फिर उसने मुझे जोर से अपनी बाहों
में कस लिया। उसकी आह ... उन्ह ... और झटके खाते शरीर और बुर के कसाव को
देख और महसूस करके तो मुझे लगा वो एक बार फिर से झड़ गई है। हमें कोई आधा
घंटा तो हो ही गया था। अब मुझे भी लगने लगा था कि मैं मोक्ष को प्राप्त
होने ही वाला हूँ। मैं अपने अंतिम धक्के उसे चौपाया (घोड़ी) बना कर लगाना
चाहता था पर बाद में मैंने इसे दूसरे राउंड के लिए छोड़ दिया और जोर जोर से
आखिरी धक्के लगाने चालू कर दिए। "ऊईइ ..... आम्माआअ ..... ईईईईईईईईईईईईई
..... " उसने अपनी बाहें मेरी कमर पर कस लीं और मेरे होंठों को मुँह में भर
कर जोर से चूसने लगी। उसका शरीर कुछ अकड़ा और फिर हल्के-हल्के झटके खाते
वो शांत पड़ती चली गई। पर उसकी मीठी सीत्कार अभी भी चालू थी। प्रथम सम्भोग
की तृप्ति और संतुष्टि उसके चहरे और बंद पलकों पर साफ़ झलक रही थी। मैंने
उसे फिर से अपनी बाहों में कस लिया और जैसे ही मैंने 3-4 धक्के लगाए मेरे
वीर्य उसकी कुंवारी चूत में टपकने लगा। मेरी पाठिकाएं शायद सोच रही होंगे
कि बुर के अन्दर मैंने अपना वीर्य क्यों निकाला? अगर अंगूर गर्भवती हो जाती
तो ? आप सही सोच रही है। मैंने भी पहले ऐसा सोचा था। पर आप तो जानती ही
हैं मैं मधुर (मेरी पत्नी) को इतना प्रेम क्यों करता हूँ। उसके पीछे दरअसल
एक कारण है। वो तो मेरे लिए जाने अनजाने में कई बार कुछ ऐसा कर बैठती है कि
मैं तो उसका बदला अगले सात जन्मों तक भी नहीं उतार पाऊंगा। ओह ... आप नहीं
समझेंगी मैं ठीक से समझाता हूँ : मैंने बताया था ना कि मधुर ने पिछले
हफ्ते मुझे अंगूर के लिए माहवारी पैड्स लाने को कहा था ? आप तो जानती ही
हैं कि अगर माहवारी ख़त्म होने के 8-10 दिन तक सुरक्षित काल होता है और इन
दिनों में अगर वीर्य योनी के अन्दर भी निकाल दिया जाए तो गर्भधारण की
संभावना नहीं रहती। ओह ... मैं भी फजूल बातें ले बैठा।बाकि फिर

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