Sabtu, 23 Februari 2013

[Human Capital] हिंदी स्टोरी अंगूर का दाना और मेड सरर्वेंट अंगूर की पहली चुदाई विडियो

 



 

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हिंदी स्टोरी अंगूर का दाना और मेड सरर्वेंट अंगूर की पहली चुदाई विडियो
राजू

अंगूर का दाना-1
एक गहरी खाई जब बनती है तो अपने अस्तित्व के पीछे
जमाने में महलों के अम्बार लगा देती है उसी तरह हम गरीब बदकिस्मत इंसान टूट कर भी तुम्हें आबाद किये जाते हैं।
……… इसी कहानी से
अभी पिछले
दिनों खबर आई थी कि 18 वर्षीय नौकरानी जिसने फिल्म अभिनेता शाईनी आहूजा पर
बलात्कार का आरोप लगया था, अपने बयान से पलट गई।इस शाइनी आहूजा ने तो हम सब
शादीशुदा प्रेमी जनों की वाट ही लगा दी है। साले इस पप्पू से तो एक अदना
सी नौकरानी भी ढंग से नहीं संभाली गई जिसने पता नहीं कितने लौड़े खाए होंगे
और कितनों के साथ नैन मटक्का किया होगा। हम जैसे पत्नी-पीड़ितों को कभी
कभार इन नौकरानियों से जो दैहिक और नयनसुख नसीब हो जाता था अब तो वो भी
गया। इस काण्ड के बाद तो सभी नौकरानियों के नखरे और भाव आसमान छूने लगे
हैं। जो पहले 200-400 रुपये या छोटी मोटी गिफ्ट देने से ही पट जाया करती थी
आजकल तो इनके नाज़ और नखरे किसी फ़िल्मी हिरोइन से कम नहीं रह गए। अब तो
कोई भी इनको चोदने की तो बात छोड़ो चूमने या बाहों में भर लेने से पहले सौ
बार सोचेगा। और तो और अब तो सभी की पत्नियाँ भी खूबसूरत और जवान नौकरानी को
रखने के नाम से ही बिदकने लगी हैं। पता नहीं मधुर (मेरी पत्नी) आजकल क्यों
मधु मक्खी बन गई है। उस दिन मैंने रात को चुदाई करते समय उसे मज़ाक में कह
दिया था कि तुम थोड़ी गदरा सी हो गई हो। वह तो इस बात को दिल से ही लगा
बैठी। उसने तो डाइटिंग के बहाने खाना पीना ही छोड़ दिया है। बस उबली हुई
सब्जी या फल ही लेती है और सुबह साम 2-2 घंटे सैर करती है। मुझे भी मजबूरन
उसका साथ देना पड़ता है। और चुदाई के लिए तो जैसे उसने कसम ही खा ली है बस
हफ्ते में शनिवार को एक बार। ओह … मैं तो अपना लंड हाथ में लिए कभी कभी
मुट्ठ मारने को मजबूर हो जाता हूँ। वो रूमानी दिन और रातें तो जैसे कहीं
गुम ही हो गये हैं। अनारकली के जाने के बाद कोई दूसरी ढंग की नौकरानी मिली
ही नहीं। (आपको "मेरी अनारकली" जरुर याद होगी) सच कहूं तो जो सुख मुझे
अनारकली ने दिया था मैं उम्र भर उसे नहीं भुला पाऊंगा। आह … वो भी क्या दिन
थे जब 'मेरी अनारकली' सारे सारे दिन और रात मेरी बाहों में होती थी और मैं
उसे अपने सीने से लगाए अपने आप को शहजादा सलीम से कम नहीं समझता था। मैंने
आपको बताया था ना कि उसकी शादी हो गई है। अब तो वो तीन सालों में ही 2
बच्चों की माँ भी बन गई है और तीसरे की तैयारी जोर शोर से शुरू है। गुलाबो
आजकल बीमार रहती है सो कभी आती है कभी नागा कर जाती है। पिछले 3-4 दिनों से
वो काम पर नहीं आ रही थी। बहुत दिनों के बाद कल अनारकली काम करने आई थी।
मैंने कोई एक साल के बाद उसे देखा था।अब तो वो पहचान में ही नहीं आती। उसका
रंग सांवला सा हो गया है और आँखें तो चहरे में जैसे धंस सी गई हैं। जो
उरोज कभी कंधारी अनारों जैसे लगते थे आजकल तो लटक कर फ़ज़ली आम ही हो गए
हैं। उसके चहरे की रौनक, शरीर की लुनाई, नितम्बों की थिरकन और कटाव तो जैसे
आलू की बोरी ही बन गए हैं। किसी ने सच ही कहा है गरीब की बेटी जवान भी
जल्दी होती है और बूढ़ी भी जल्दी ही हो जाती है। कल जब वो झाडू लगा रही थी
तो बस इसी मौके की तलाश में थी कि कब मधुर इधर-उधर हो और वो मेरे से बात कर
पाए। जैसे ही मधुर बाथरूम में गई वो मेरे नजदीक आ कर खड़ी हो गई और
बोली,"क्या हाल हैं मेरे एस. एस. एस. (सौदाई शहजादे सलीम) ?" "ओह … मैं ठीक
हूँ … तुम कैसी हो अनारकली …?" "बाबू तुमने तो इस अनारकली को भुला ही दिया
… मैं तो … मैं तो …?" उसकी आवाज कांपने लगी और गला रुंध सा गया था। मुझे
लगा वो अभी रोने लगेगी। वो सोफे के पास फर्श पर बैठ गई। "ओह … अनारकली
दरअसल … मैं… मैं… तुम्हें भूला नहीं हूँ तुम ही इन दिनों में नज़र नहीं
आई?" "बाबू मैं भला कहाँ जाउंगी। तुम जब हुक्म करोगे नंगे पाँव दौड़ी चली
आउंगी अपने शहजादे के लिए !" कह कर उसने मेरी ओर देखा। उसकी आँखों में
झलकता प्रणय निवेदन मुझ से भला कहाँ छुपा था। उसकी साँसें तेज़ होने लगी थी
और आँखों में लाल डोरे से तैरने लगे थे। बस मेरे एक इशारे की देरी थी कि
वो मेरी बाहों में लिपट जाती। पर मैं ऐसा नहीं चाहता था। उस चूसी हुई हड्डी
को और चिंचोड़ने में भला अब क्या मज़ा रह गया था। जाने अनजाने में जो सुख
मुझे अनारकली ने आज से 3 साल पहले दे दिया था मैं उन हसीन पलों की सुनहरी
यादों को इस लिजलिजेपन में डुबो कर यूं खराब नहीं करना चाहता था। इससे पहले
कि मैं कुछ बोलूँ या अनारकली कुछ करे बाथरूम की चिटकनी खुलने की आवाज आई
और मधुर की आवाज सुनाई दी,"अन्नू ! जरा साबुन तो पकड़ाना !" "आई दीदी …."
अनारकली अपने पैर पटकती बाथरूम की ओर चली गई। मैं भी उठकर अपने स्टडी-रूम
में आ गया। आज फिर गुलाबो नहीं आई थी और उसकी छोटी लड़की अंगूर आई थी।
अंगूर और मधुर दोनों ही रसोई में थी। मधु उस पर पता नहीं क्यों गुस्सा होती
रहती है। वो भी कोई काम ठीक से नहीं कर पाती। लगता है उसका भी ऊपर का माला
खाली है। कभी कुछ गिरा दिया कभी कुछ तोड़ दिया। इतने में पहले तो रसोई से
किसी कांच के बर्तन के गिर कर टूटने की आवाज आई और फिर मधु के चिल्लाने की,
"तुम से तो एक भी काम सलीके से नहीं होता। पता है यह टी-सेट मैंने जयपुर
से खरीदा था। इतने महंगे सेट का सत्यानाश कर दिया। इस गुलाबो की बच्ची को
तो बस बच्चे पैदा करने या पैसों के सिवा कोई काम ही नहीं है। इन छोकरियों
को मेरी जान की आफत बना कर भेज देती है। ओह … अब खड़ी खड़ी मेरा मुँह क्या
देख रही है चल अब इसे जल्दी से साफ़ कर और साहब को चाय बना कर दे। मैं
नहाने जा रही हूँ।" मधु बड़बड़ाती हुई रसोई से निकली और बाथरूम में घुस कर
जोर से उसका पल्ला बंद कर लिया। मैं जानता हूँ जब मधु गुस्सा होती है तो
फिर पूरे एक घंटे बाथरूम में नहाती है। आज रविवार का दिन था। आप तो जानते
ही हैं कि रविवार को हम दोनों साथ साथ नहाते हैं पर आज मधु को स्कूल के
किसी फंक्शन में भी जाना था और जिस अंदाज़ में उसने बाथरूम का दरवाजा बंद
किया था मुझे नहीं लगता वो किसी भी कीमत पर मुझे अपने साथ बाथरूम में आने
देगी। अब मैं यह देखना चाहता था कि अन्दर क्या हुआ है इस लिए मैं रसोई की
ओर चला गया। अन्दर फर्श पर कांच के टुकड़े बिखरे पड़े थे और अंगूर सुबकती
हुई उन्हें साफ़ कर रही थी। ओह … गुलाबो तो कहती है कि अंगूर पूरी 18 की हो
गई है पर मुझे नहीं लगता कि उसकी उम्र इतनी होगी। उसने गुलाबी रंग का पतला
सा कुरता पहन रखा था जो कंधे के ऊपर से थोड़ा फटा था। उसने सलवार नहीं
पहनी थी बस छोटी सी सफ़ेद कच्छी पहन रखी थी। मेरी नज़र उसकी जाँघों के बीच
चली गई। उसकी गोरी जांघें और सफ़ेद कच्छी में फंसी बुर की मोटी मोटी फांकों
का उभार और उनके बीच की दरार देख कर मुझे लगा कि गुलाबो सही कह रही थी
अंगूर तो पूरी क़यामत बन गई है। मेरा दिल तो जोर जोर से धड़कने लगा। मैं
उसके पास जाकर खड़ा हो गया तब उसका ध्यान मेरी ओर गया। जैसे ही उसने अपनी
मुंडी ऊपर उठाई मेरा ध्यान उसके उन्नत उरोजों पर चला गया। हल्के भूरे
गुलाबी रंग के गोल गोल कश्मीरी सेब जैसे उरोज तो जैसे क़यामत ही बने थे। हे
लिंग महादेव ….. इसके छोटे छोटे उरोज तो मेरी मिक्की जैसे ही थे। ऐसा नहीं
है कि मैंने अंगूर को पहली बार देखा था। इससे पहले भी वो दो-चार बार
गुलाबो के साथ आई थी। मैंने उस समय ध्यान नहीं दिया था। दो साल पहले तक तो
यह निरी काली-कलूटी कबूतरी सी ही तो थी और गुलाबो का पल्लू ही पकड़े रहती
थी। ओह…. यह तो समय से पहले ही जवान हो गई है। यह सब टीवी और फिल्मों का
असर है। अंगूर टीवी देखने की बहुत शौक़ीन है। अब तो इसका रंग रूप और जवानी
जैसे निखर ही आई है। उसका रंग जरुर थोड़ा सांवला सा है पर मोटी मोटी काली
आँखें, पतले पतले गुलाबी होंठ, सुराहीदार गर्दन, पतली कमर, मखमली जांघें और
गोल मटोल नितम्ब तो किसी को भी घायल कर दें। उसके निम्बू जैसे उरोज तो अब
इलाहबाद के अमरूद ही बन चले हैं। मैं तो यह सोच कर ही रोमांचित हो जाता हूँ
कि जिस तरह उसके सर के बाल कुछ घुंघराले से हैं उसकी पिक्की के बाल कितने
मुलायम और घुंघराले होंगे।
उफ्फ्फफ्फ्फ्फ़ ……………
मधु तो बेकार ही
गुलाबो को दोष देती रहती है। और हम लोग भी इनके अधिक बच्चों को लेकर नाहक
ही अपनी नाक और भोहें सिकोड़ते रहते हैं। वैसे देखा जाए तो हमारे जैसे
मध्यमवर्गीय लोग तो डाक्टर और इंजीनियर पैदा करने के चक्कर में बस क्लर्क
और परजीवी ही पैदा करते हैं। असल में घरों, खेतों, कल कारखानों, खदानों और
बाज़ार के लिए मानव श्रम तो गुलाबो जैसे ही पैदा करते हैं। गुलाबो तू धन्य
है। ओह … मैं भी क्या बेकार की बातें ले बैठा। मैं अंगूर की बात कर रहा था।
मुझे एक बार अनारकली ने बताया था कि जिस रात यह पैदा हुई थी बापू उस रात
अम्मा के लिए अंगूर लाये थे। सो इसका नाम अंगूर रख दिया। वाह … क्या खूब
नाम रखा है गुलाबो ने भी। यह तो एक दम अंगूर का गुच्छा ही है। मैंने देखा
अंगूर की तर्जनी अंगुली शायद कांच से कट गई थी और उससे खून निकल रहा था। वह
दूसरे हाथ से उसे पकड़े सुबक रही थी। मुझे अपने पास देख कर वो खड़ी हो गई
तो मैंने पूछा, "अरे क्या हुआ अंगूर ?" "वो…. वो…. कप प्लेट टूट गए….?"
"अरे … मैं कप प्लेट की नहीं तुम्हारी अंगुली पर लगी चोट की बात कर रहा
हूँ…? दिखाओ क्या हुआ ?" मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी अंगुली से खून बह
रहा था। मैं उसे कंधे से पकड़कर रसोई में बने सिंक पर ले गया और नल के नीचे
लगा कर उसकी अंगुली पर पानी डालने लगा। घाव ज्यादा गहरा नहीं था बस थोड़ा
सा कट गया था। पानी से धोने के बाद मैंने उसकी अंगुली मुँह में लेकर उस पर
अपना थूक लगा दिया। वो हैरान हुई मुझे देखती ही रह गई कि मैंने उसकी गन्दी
सी अंगुली मुँह में कैसे ले ली। वो हैरान हुई बोली "अरे… आपने तो … मेरी
अंगुली मुँह में … ?" "थूक से तुम्हारा घाव जल्दी भर जाएगा और दर्द भी नहीं
होगा !" कहते हुए मैंने उसके गालों को थपथपाया और फिर उन पर चिकोटी काट
ली। ऐसा सुनहरा अवसर भला फिर मुझे कहाँ मिलता। उसके नर्म नाज़ुक गाल तो ऐसे
थे जैसे रुई का फोहा हो। वो तो शर्म के मारे लाल ही हो गई … या अल्लाह ……
शर्माते हुए यह तो पूरी मिक्की या सिमरन ही लग रही थी। मेरा पप्पू तो
हिलोरें ही मारने लगा था ……
इस्स्स्सस्स्स्स …….
उसके बाद मैंने उसकी
अंगुली पर बैंड एड (पट्टी) लगा दी। मैंने उससे कहा "अंगूर तुम थोड़ा ध्यान
से काम किया करो !" उसने हाँ में अपनी मुंडी हिला दी। "और हाँ यह पट्टी
रोज़ बदलनी पड़ेगी ! तुम कल भी आ जाना !" "मधुर दीदी डांटेंगी तो नहीं ना
?" "अरे नहीं मैं मधु को समझा दूंगा वो तुम्हें अब नहीं डांटेंगी ….. मैं
हूँ ना तुम क्यों चिंता करती हो !" और मैंने उसकी नाक पकड़ कर दबा दिया। वो तो छुईमुई गुलज़ार ही बन गई और मैं नए रोमांच से जैसे झनझना उठा। यौवन की
चोखट (दहलीज़) पर खड़ी यह खूबसूरत कमसिन बला अब मेरी बाहों से बस थोड़ी ही
दूर तो रह गई है। मेरा जी तो उसका एक चुम्बन भी ले लेने को कर रहा था।
मैंने अपने आप को रोकने की बड़ी कोशिश की पर मैं एक बार फिर से उसके गालों
को थपथपाने से अपने आप को नहीं रोक पाया। आज के लिए इतना ही काफी था। हे
लिंग महादेव ….. बस एक बार अपना चमत्कार और दिखा दे यार। बस इसके बाद मैं
कभी तुमसे कुछ और नहीं मांगूंगा अलबत्ता मैं महीने के पहले सोमवार को रोज़
तुम्हें दूध और जल चढ़ने जरूर आऊंगा। काश कुछ ऐसा हो कि यह कोरी अनछुई
छुईमुई कमसिन बाला मेरी बाहों में आ जाए और फिर मैं सारी रात इसके साथ गुटर गूं करता रहूँ। सच पूछो तो मिक्की के बाद उस तरह की कमसिन लड़की मुझे मिली ही नहीं थी। पता नहीं इस कमसिन बला को पटाने में मुझे कितने पापड़ बेलने
पड़ेंगे। पर अब सोचने वाली बात यह भी है कि हर बार बेचारा लिंग महादेव मेरी बात क्यों मानेगा। ओह … चलो अगर यह चिड़िया इस बार फंस जाए तो मैं भोलेशाह की मज़ार पर जुम्मेरात (गुरूवार) को चादर जरुर चढ़ाऊंगा। रात में मधुर ने
बताया कि गुलाबो का गर्भपात हुआ है और वो अगले आठ-दस दिनों काम पर नहीं
आएगी। मेरी तो मन मांगी मुराद ही जैसे पूरी होने जा रही थी। पर इस कमसिन
लौंडिया को चोदने में मेरी सबसे बड़ी दिक्कत तो मधु ही थी। उसने यह भी
बताया कि अन्नू (अनारकली) भी कुछ पैसे मांग रही थी। उसके पति की नौकरी छूट
गई है और वह रोज़ शराब पीने लगा है। उसे कभी कभी मारता पीटता भी है। पता
नहीं इन गरीबों के साथ ऐसा क्यों होता है?मैं जानता हूँ मधु का गुस्सा तो
बस दूध के उफान की तरह है। वह इतनी कठोर नहीं हो सकती। वो जल्दी ही अनारकली और गुलाबो की मदद करने को राज़ी हो जायेगी। अचानक मेरे दिमाग में बिज़ली
सी चमकी और फिर मुझे ख़याल आया कि यह तो अंगूर के दाने को पटाने का सबसे
आसान और बढ़िया रास्ता है … ओह … मैं तो बेकार ही परेशान हो रहा था। अब तो
मेरे दिमाग में सारी योजना शीशे की तरह साफ़ थी। मधु को आज भी जल्दी स्कूल
जाना था। मैंने आपको बताया था ना कि मधु स्कूल में टीचर है। सुबह 8 बजे वो
जब स्कूल जाने के लिए निकल रही थी तब अंगूर आई। मधु ने उसको समझाया "साहब
के लिए पहले चाय बना देना और फिर झाडू पोंछा कर लेना। और ध्यान रखना आज कुछ गड़बड़ ना हो। कुछ तोड़ फोड़ दिया तो बस इस बार तुम्हारी खैर नहीं !" मधु
तो स्कूल चली गई पर अंगूर सहमी हुई सी वहीं खड़ी रही। मैंने पहले तो उसके
अमरूदों को निहारा और फिर जाँघों को। फिर मेरा ध्यान उसके चेहरे पर गया।
उसके होंठ और गाल कुछ सूजे हुए से लग रहे थे। पता नहीं क्या बात थी। मेरा
दिल जोर जोर से धड़क रहा था और मैं तो बस उसे छूने या चूमने का जैसे कोई ना कोई उपयुक्त बहाना ही ढूंढ रहा था। मैंने पूछा "अरे अंगूर तुम्हारे होंठों को क्या हुआ है ?" उसका एक हाथ उसके होंठों पर चला गया। वो रुआंसी सी आवाज में बोली "कल अम्मा ने मारा था !" "क्यों ?" "वो … कल म…. मेरे से कप
प्लेट टूट गए थे ना !" "ओह … क्या घर पर भी तुमने कप प्लेट तोड़ दिए थे ?"
"नहीं … कल यहाँ जो कप प्लेट टूटे थे उनके लिए !" मेरे कुछ समझ नहीं आया।
यहाँ जो कप प्लेट टूटे थे उसका इसकी मार से क्या सम्बन्ध था। मैंने फिर
पूछा "पर कप प्लेट तो यहाँ टूटे थे इसके लिए गुलाबो ने तुम्हें क्यों मारा
?" "वो…. वो … कल दीदी ने पगार देते समय 100 रुपये काट लिए थे इसलिए अम्मा
गुस्सा हो गई और मुझे बहुत जोर जोर से मारा !" उसकी आँखों से टप टप आंसू
गिरने लगे। मुझे उस पर बहुत दया भी आई और मधु पर बहुत गुस्सा। अगर मधु अभी
यहाँ होती तो निश्चित ही मैं अपना आपा खो बैठता। एक कप प्लेट के लिए बेचारी को कितनी मार खानी पड़ी। ओह … इस मधु को भी पता नहीं कभी कभी क्या हो जाता है। "ओह … तुम घबराओ नहीं। कोई बात नहीं मैं 100 रुपये दिलवा दूंगा।" मैं
उठकर उसके पास आ गया और उसके होंठों को अपनी अगुलियों से छुआ। आह…. क्या
रेशमी अहसास था। बिलकुल गुलाबी रंगत लिए पतले पतले होंठ सूजे हुए ऐसे लग
रहे थे जैसे संतरे की फांकें हों। या अल्लाह ….. (सॉरी हे … लिंग महादेव)
इसके नीचे वाले होठ तो पूरी कटार की धार ही होंगे। मेरा पप्पू तो इसी ख्याल से पाजामे के अन्दर उछल कूद मचाने लगा। "तुमने कोई दवाई लगाई या नहीं ?"
"न … नहीं …तो …?" उसने हैरानी से मेरी ओर देखा। उसके लिए तो यह रोज़मर्रा
की बात थी जैसे। पर मेरे लिए इससे उपयुक्त अवसर भला दूसरा क्या हो सकता था। मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए समझाने वाले अंदाज़ में कहा, "ओह….
तुम्हें डिटोल और कोई क्रीम जरुर लगानी चाहिए थी। चलो मैं लगा देता हूँ …
आओ मेरे साथ !" मैंने उसे बाजू से पकड़ा और बाथरूम में ले आया और पहले तो
उसके होंठों को डिटोल वाले पानी से धोया और फिर जेब से रुमाल निकाल कर उसके होंठों और गालों पर लुढ़कते मोतियों (आंसुओं) को पोंछ दिया। "कहो तो इन
होंठों को भी अंगुली की तरह चूम कर थूक लगा दूं ?" मैंने हंसते हुए मज़ाक
में कहा। पहले तो उसकी समझ में कुछ नहीं आया लेकिन बाद में तो वो इतना जोर
से शरमाई कि उसकी इस कातिल अदा को देख कर मुझे लगा मेरा पप्पू तो पजामे में ही शहीद हो जाएगा। "न…. नहीं मुझे शर्म आती है !" हाय…. अल्लाह ….. मैं तो उसकी इस सादगी पर मर ही मिटा। उसकी बेटी ने उठा रखी है दुनिया सर पे खुदा
का शुक्र है अंगूर के बेटा न हुआ "अच्छा चलो थोड़ी क्रीम तो लगा लो ?" "हाँ वो लगा दो !" उसने अपने होंठ मेरी ओर कर दिए। मेरे पाठको और पाठिकाओ ! आप
जरुर सोच रहे होंगे कि अब तो बस दिल्ली लुटने को दो कदम दूर रह गई होगी। बस अब तो प्रेम ने इस खूबसूरत कमसिन नाज़ुक सी कलि को बाहों में भर कर उसके
होंठों को चूम लिया होगा। वो पूरी तरह गर्म हो चुकी होगी और उसने भी अपने
शहजादे का खड़ा इठलाता लंड पकड़ कर सीत्कार करनी चालू कर दी होगी ?
पढ़ते रहिए ..... कई भागों में समाप्य
अंगूर का दाना-2
मेरे पाठको और पाठिकाओ ! आप जरूर सोच रहे होंगे कि अब
तो बस दिल्ली लुटने को दो कदम दूर रह गई होगी। बस अब तो प्रेम ने इस
खूबसूरत कमसिन नाज़ुक सी कलि को बाहों में भर कर उसके होंठों को चूम लिया
होगा। वो पूरी तरह गर्म हो चुकी होगी और उसने भी अपने शहजादे का खड़ा
इठलाता लंड पकड़ कर सीत्कार करनी चालू कर दी होगी ? नहीं दोस्तों ! इतना
जल्दी यह सब तो बस कहानियों और फिल्मों में ही होता है। कोई भी कुंवारी
लड़की इतनी जल्दी चुदाई के लिए राज़ी नहीं होती। हाँ इतना जरूर था कि मैं
बस उसके होंठों को एक बार चूम जरूर सकता था। दरअसल मैं इस तरह उसे पाना भी
नहीं चाहता था। आप तो जानते ही हैं कि मैं प्रेम का पुजारी हूँ और किसी भी
लड़की या औरत को कभी उसकी मर्ज़ी के खिलाफ नहीं चोदना चाहता। मैं तो चाहता
था कि हम दोनों मिलकर उस आनंद को भोगें जिसे सयाने और प्रेमीजन ब्रह्मानंद
कहते हैं और कुछ मूर्ख लोग उसे चुदाई का नाम देते हैं। मैंने उसके होंठों
पर हल्के से बोरोलीन लगा दी। हाँ इस बार मैंने उसके गालों को छूने के स्थान पर एक बार चूम जरूर लिया। मुझे लगा वो जरूर कसमसाएगी पर वो तो छुईमुई बनी
नीची निगाहों से मेरे पाजामे में बने उभार को देखती ही रह गई। उसे तो यह
गुमान ही नहीं रहा होगा कि मैं इस कदर उस अदना सी नौकरानी का चुम्मा भी ले
सकता हूँ। मेरा पप्पू (लंड) तो इतनी जोर से अकड़ा था जैसे कह रहा हो- गुरु
मुझे भी इस कलि के प्रेम के रस में भिगो दो। अब तो मुझे भी लगने लगा था कि
मुझे पप्पू की बात मान लेनी चाहिए। पर मुझे डर भी लग रहा था। अंगूर के
नितम्ब जरूर बड़े बड़े और गुदाज़ थे पर मुझे लगता था वो अभी कमसिन बच्ची ही है। वैसे तो मैंने जब अनारकली की चुदाई की थी उसकी उम्र भी लगभग इतनी ही
थी पर उसकी बात अलग थी। वो खुद चुदने को तैयार और बेकरार थी। पर अंगूर के
बारे में अभी मैं यकीन के साथ ऐसा दावा नहीं कर सकता था। मैंने अगर उसे
चोदने की जल्दबाजी की और उसने शोर मचा दिया या मधु से कुछ उल्टा सीधा कह
दिया तो ? मैं तो सोच कर ही काँप उठता हूँ। चलो मान लिया वो चुदने को तैयार भी हो गई लेकिन प्रथम सम्भोग में कहीं ज्यादा खून खराबा या कुछ ऊँच-नीच हो गई तो मैं तो उस साले शाइनी आहूजा की तरह बेमौत ही मारा जाऊँगा और साथ में इज्जत जायेगी वो अलग। हे … लिंग महादेव अब तो बस तेरा ही सहारा है। मैं
अभी यह सब सोच ही रहा था कि ड्राइंग रूम में सोफे पर रखा मोबाइल बज़ उठा।
मुझे इस बेवक्त के फोन पर बड़ा गुस्सा आया। ओह … इस समय सुबह सुबह कौन हो
सकता है ? "हेल्लो ?" "मि. माथुर ?" "यस … मैं प्रेम माथुर ही बोल रहा हूँ
?" "वो…. वो…. आपकी पत्नी का एक्सीडेंट हो गया है … आप जल्दी आ जाइए ?" उधर से आवाज आई। "क … क्या … मतलब ? ओह…. आप कौन और कहाँ से बोल रहे हैं ?"
"देखिये आप बातों में समय खराब मत कीजिये, प्लीज, आप गीता नर्सिंग होम में
जल्दी पहुँच जाएँ !" मैं तो सन्न ही रह गया। मधुर अभी 15-20 मिनट पहले ही
तो यहाँ से चंगी भली गई थी। मुझे तो कुछ सूझा ही नहीं। हे भगवान् यह नई आफत कहाँ से आ पड़ी। अंगूर हैरान हुई मेरी ओर देख रही थी "क्या हुआ बाबू ?"
"ओह … वो... मधु का एक्सीडेंट हो गया है मुझे अस्पताल जाना होगा !" "मैं
साथ चलूँ क्या ?" "हाँ... हाँ... तुम भी चलो !" अस्पताल पहुँचने पर पता चला कि जल्दबाजी के चक्कर में मोड़ काटते समय ऑटो रिक्शा उलट गया था और मधु के दायें पैर की हड्डी टूट गई थी। उसकी रीढ़ की हड्डी में भी चोट आई थी पर वह चोट इतनी गंभीर नहीं थी। मधु के पैर का ओपरेशन करके पैर पर प्लास्टर चढ़ा
दिया गया। सारा दिन इसी आपाधापी में बीत गया। अस्पताल वाले तो मधुर को रात
भर वहीं पर रखना चाहते थे पर मधु की जिद पर हमें छुट्टी मिल गई पर घर
आते-आते शाम तो हो ही गई। घर आने पर मधु रोने लगी। उसे जब पता चला कि कल
गुलाबो ने अंगूर को बहुत मारा तो उसे अपने गुस्से पर पछतावा होने लगा। उसे
लगा यह सब अंगूर को डांटने की सजा भगवान् ने उसे दी है। अब तो वो जैसे
अंगूर पर दिलो जान से मेहरबान ही हो गई। उसने अंगूर को अपने पास बुलाया और
लाड़ से उसके गालों और सिर को सहलाया और उसे 500 रुपये भी दिए। उसने तो
गुलाबो को भी 5000 रुपये देने की हामी भर ली और कहला भेजा कि अब अंगूर को
महीने भर के लिए यहीं रहने दिया जाए क्योंकि दिन में मुझे तो दफ्तर जाना
पड़ेगा सो उसकी देखभाल के लिए किसी का घर पर होना जरूरी था। हे भगवान् तू
जो भी करता है बहुत सोच समझ कर करता है। अब तो इस अंगूर के गुच्छे को पा
लेना बहुत ही आसान हो जाएगा।
आमीन …………………..
मैंने कई बार अंगूर को
टीवी पर डांस वाले प्रोग्राम बड़े चाव से देखते हुए देखा था। कई बार वह
फ़िल्मी गानों पर अपनी कमर इस कदर लचकाती है कि अगर उसे सही ट्रेनिंग दी
जाए तो वह बड़ी कुशल नर्तकी बन सकती है। उनके घर पर रंगीन टीवी नहीं है।
हमने पिछले महीने ही नया एल सी डी टीवी लिया था सो पुराना टीवी बेकार ही
पड़ा था। मेरे दिमाग में एक विचार आया कि क्यों ना पुराना टीवी अंगूर को दे
दिया जाए। मधु तो इसके लिए झट से मान भी जायेगी। मैंने मधु को मना भी लिया
और इस चिड़िया को फ़साने के लिए अपने जाल की रूपरेखा तैयार कर ली। मधु को
भला इसके पीछे छिपी मेरी मनसा का कहाँ पता लगता। अगले दिन अंगूर अपने कपड़े
वगैरह लेकर आ गई। अब तो अगले एक महीने तक उसे यहीं रहना था। जब मैं शाम को
दफ्तर से आया तो मधुर ने बताया कि जयपुर से रमेश भैया भाभी कल सुबह आ रहे
हैं। "ओह … पर उन्हें परेशान करने की क्या जरूरत थी ?" "मैंने तो मना किया
था पर भाभी नहीं मानी। वो कहती थी कि उसका मन नहीं मान रहा वो एक बार मुझे
देखना चाहती हैं।" "हूंऽऽ … " मैं एक लम्बी सांस छोड़ी।मुझे थोड़ी निराशा
सी हुई। अगर सुधा ने यहाँ रुकने का प्रोग्राम बना लिया तो मेरी तो पूरी की
पूरी योजना ही चौपट हो जायेगी। आप तो जानते ही हैं सुधा एक नंबर की
चुद्दकड़ है। (याद करें "नन्दोइजी नहीं लन्दोइजी" वाली कहानी)। वो तो मेरी
मनसा झट से जान जायेगी। उसके होते अंगूर को चोदना तो असंभव ही होगा। "भैया
कह रहे थे कि वो और सुधा भाभी शाम को ही वापस चले जायेंगे !" "ओह … तब तो
ठीक है … म… मेरा मतलब है कोई बात नहीं...?" मेरी जबान फिसलते फिसलते बची।
फिर उसने अंगूर को आवाज लगाई "अंगूर ! साहब के लिए चाय बना दे !" "जी बनाती
हूँ !" रसोई से अंगूर की रस भरी आवाज सुनाई दी। मैंने बाथरूम में जाकर
कपड़े बदले और पाजामा-कुरता पहन कर ड्राइंग-रूम में सोफे पर बैठ गया। थोड़ी
देर बाद अंगूर चाय बना कर ले आई। आज तो उसका जलवा देखने लायक ही था। उसने
जोधपुरी कुर्ती और घाघरा पहन रखा था। सर पर सांगानेरी प्रिंट की ओढ़नी।
लगता है मधु आज इस पर पूरी तरह मेहरबान हो गई है। यह ड्रेस तो मधु ने जब हम
जोधपुर घूमने गए थे तब खरीदी थी और उसे बड़ी पसंद थी। जिस दिन वो यह घाघरा
और कुर्ती पहनती थी मैं उसकी गांड जरूर मारता था। ओह … अंगूर तो इन कपड़ों
में महारानी जोधा ही लग रही थी। मैं तो यही सोच रहा था कि उसने इस घाघरे
के अन्दर कच्छी पहनी होगी या नहीं। मैं तो उसे इस रूप में देख कर ठगा सा ही
रह गया। मेरा मन तो उसे चूम लेने को ही करने लगा और मेरा पप्पू तो उसे
सलाम पर सलाम बजाने लगा था। वह धीरे धीरे चलती हुई हाथ में चाय की ट्रे
पकड़े मेरे पास आ गई। जैसे ही वो मुझे चाय का कप पकड़ाने के लिए झुकी तो
कुर्ती से झांकते उसके गुलाबी उरोज दिख गए। दायें उरोज पर एक काला तिल और
चने के दाने जितनी निप्पल गहरे लाल रंग के।
उफ्फ्फ ………
मेरे मुँह से बे-साख्ता निकल
गया,"वाह अंगूर … तुम तो ….?" इस अप्रत्याशित आवाज से वो चौंक पड़ी और उसके हाथ से चाय छलक कर मेरी जाँघों पर गिर गई। मैंने पाजामा पहन रखा था इस लिए थोड़ा बचाव हो गया। मुझे गर्म गर्म सा लगा और मैंने अपनी जेब से रुमाल
निकाला और पाजामे और सोफे पर गिरी चाय को साफ़ करने लगा। वो तो मारे डर के
थर-थर कांपने लगी। "म … म मुझे माफ़ कर दो … गलती हो गई …म … म …" वो लगभग
रोने वाले अंदाज़ में बोली। "ओह … कोई बात नहीं चलो इसे साफ़ कर दो !"
मैंने कहा। उसने मेरे हाथों से रुमाल ले लिया और मेरी जाँघों पर लगी चाय
पोंछने लगी। उसकी नर्म नाज़ुक अंगुलियाँ जैसे ही मेरी जांघ से टकराई मेरे
पप्पू ने अन्दर घमासान मचा दिया। वो आँखें फाड़े हैरान हुई उसी ओर देखे जा
रही थी। मेरे लिए यह स्वर्णिम अवसर था। मैंने दर्द होने का बेहतरीन नाटक
किया "आआआआ ……..!" "ज्यादा जलन हो रही है क्या ?" "ओह … हाँ … थोड़ी तो है ! प... पर कोई बात नहीं !" "कोई क्रीम लगा दूं क्या ?" "अरे क्रीम से क्या
होगा …?" "तो ?" "मेरी तरह अपने होंठों से चाट कर थूक लगा दो तो जल्दी ठीक
हो जायगा।" मैंने हंसते हुए कहा। अंगूर तो मारे शर्म के दोहरी ही हो गई।
उसने ओढ़नी से अपना मुँह छुपा लिया। उसके गाल तो लाल टमाटर ही हो गए और मैं अन्दर तक रोमांच में डूब गया। मैं एक बार उसका हाथ पकड़ना चाहता था पर
जैसे ही मैंने अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाया, वो बोली,"मैं आपके लिए दुबारा चाय
बना कर लाती हूँ !" और वो फिर से रसोई में भाग गई। मैं तो बस उस फुदकती
मस्त चंचल मोरनी को मुँह बाए देखता ही रह गया। पता नहीं कब यह मेरे पहलू
में आएगी। इस कुलांचें भरती मस्त हिरनी के लिए तो अगर दूसरा जन्म भी लेना
पड़े तो कोई बात नहीं। मेरे पप्पू तो पजामा फाड़कर बाहर आने को बेताब हो
रहा था और अन्दर कुछ कुलबुलाने लगा था। मुझे एक बार फिर से बाथरूम जाना
पड़ा … खाना खाने के बाद मधु को दर्द निवारक दवा दे दी और अंगूर उसके पास
ही छोटी सी चारपाई डाल कर सो गई। मैं दूसरे कमरे में जाकर सो गया। अगले दिन जब मैं दफ्तर से शाम को घर लौटा तो अंगूर मधु के पास ही बैठी थी। उसने
सफ़ेद रंग की पैंट और गुलाबी टॉप पहन रखा था। हे लिंग महादेव यह कमसिन बला
तो मेरी जान ही लेकर रहेगी। सफ़ेद पैंट में उसके नितम्ब तो जैसे कहर ही ढा
रहे थे। आज तो लगता है जरूर क़यामत ही आ जायेगी। शादी के बाद जब हम अपना
मधुमास मनाने खजुराहो गए थे तब मधुर अक्सर यही कपड़े पहनती थी। बस एक रंगीन चश्मा और पहन ले तो मेरा दावा है यह कई घर एक ही दिन में बर्बाद कर देगी।
पैंट का आगे का भाग तो ऐसे उभरा हुआ था जैसे इसने भरतपुर या ग्वालियर के
राज घराने का पूरा खजाना ही छिपा लिया हो। मधु ने उसे मेरे लिए चाय बनाने
भेज दिया। मैं तो तिरछी नज़रों से उसके नितम्बों की थिरकन और कमर की लचक
देखता ही रह गया। जब अंगूर चली गई तो मधु ने इशारे से मुझे अपनी ओर बुलाया। आज वो बहुत खुश लग रही थी। उसने मेरा हाथ अपने हाथों में पकड़ कर चूम
लिया। मैंने भी उसके होंठों को चूम लिया तो वो शर्माते हुए बोली,"प्रेम
मुझे माफ़ कर दो प्लीज मैंने तुम्हें बहुत तरसाया है। मुझे ठीक हो जाने दो, मैं तुम्हारी सारी कमी पूरी कर दूंगी।" मैं जानता हूँ मधु ने जिस तरीके से मुझे पिछले दो-तीन महीनों से चूत और गांड के लिए तरसाया था वो अच्छी तरह
जानती थी। अब शायद उसे पश्चाताप हो रहा था। "प्रेम एक काम करना प्लीज !"
"क्या ?" "ओह … वो... स्माल साइज के सेनेटरी पैड्स (माहवारी के दिनों में
काम आने वाले) ला देना !" "पर तुम तो लार्ज यूज करती हो ?" "तुम भी …. ना … ओह … अंगूर के लिए चाहिए थे उसे आज माहवारी आ गई है।" "ओह…. अच्छा … ठीक
है मैं कल ले आऊंगा।" कमाल है ये औरतें भी कितनी जल्दी एक दूसरे की अन्तरंग बातें जान लेती हैं। "ये गुलाबो भी एक नंबर की पागल है !" "क्यों क्या हुआ ?" "अब देखो ना अंगूर 18 साल की हो गई है और इसे अभी तक मासिक के बारे में भी ठीक से नहीं पता और ना ही इसे इन दिनों में पैड्स यूज करना सिखाया !"
"ओह …." मेरे मन में तो आया कह दूं 'मैं ठीक से सिखा दूंगा तुम क्यों चिंता करती हो' पर मेरे मुँह से बस 'ओह' ही निकला। मैं बाहर ड्राइंग रूम में आ
गया और टीवी देखने लगा। अंगूर चाय बना कर ले आई। अब मैंने ध्यान से उसकी
पैंट के आगे का फूला हुआ हिस्सा देखा। आज अगर मिक्की जिन्दा होती तो लगभग
ऐसी ही दिखती। मैं तो बस इसी ताक में था कि एक बार ढीले से टॉप में उसके
सेब फिर से दिख जाएँ। मैंने चाय का कप पकड़ते हुए कहा "अंगूर इन कपड़ों में तो तू पूरी फ़िल्मी हिरोइन ही लग रही हो !" "अच्छा ?" उसने पहले तो मेरी
ओर हैरानी से देखा फिर मंद मंद मुस्कुराने लगी। मैंने बात जारी रखी, "पता
है मशहूर फिल्म अभिनेत्री मधुबाला भी फिल्मों में आने से पहले एक डायरेक्टर के घर पर नौकरानी का काम किया करती थी। सच कहता हूँ अगर मैं फ़िल्मी
डायरेक्टर होता तो तुम्हें हिरोइन लेकर एक फिल्म ही बना देता !" "सच ?" "और नहीं तो क्या ?" "अरे नहीं बाबू, मैं इतनी खूबसूरत कहाँ हूँ ?" 'अरे मेरी
जान तुम क्या हो यह तो मेरी इन आँखों और धड़कते दिल से पूछो' मैंने अपने मन में ही कहा। मैं जानता था इस कमसिन मासूम बला को फांसने के लिए इसे रंगीन
सपने दिखाना बहुत जरूरी है। बस एक बार मेरे जाल में उलझ गई तो फिर कितना भी फड़फड़ाये, मेरे पंजों से कहाँ बच पाएगी। मैंने कहा "अंगूर तुम्हें डांस
तो आता है ना ?" "हाँ बाबू मैं बहुत अच्छा डांस कर लेती हूँ। हमारे घर टीवी नहीं है ना इसलिय मैं ज्यादा नहीं सीख पाई पर मधुर दीदी जब लड़कियों को
कभी कभी डांस सिखाती थी मैं भी उनको देख कर सीख गई। मैं फ़िल्मी गानों पर
तो हिरोइनें जैसा डांस करती हैं ठीक वैसा ही कर सकती हूँ। मैं 'डोला रे
डोला रे' और 'कजरारे कजरारे' पर तो एश्वर्या राय से भी अच्छा डांस कर सकती
हूँ !" उसने बड़ी अदा से अपनी आँखें नचाते हुए कहा। "अरे वाह … फिर तो बहुत ही अच्छा है। मुझे भी वह डांस सबसे अच्छा लगता है !" "अच्छा ?" "अंगूर एक
बात बता !" "क्या ?" "अगर तुम्हारे घर में रंगीन टीवी हो तो तुम कितने
दिनों में पूरा डांस सीख जाओगी ?" "अगर हमारे घर रंगीन टीवी हो तो मैं 10
दिनों में ही माधुरी दीक्षित से भी बढ़िया डांस करके दिखा सकती हूँ !" उसकी आँखें एक नए सपने से झिलमिला उठी थी। बस अब तो चिड़िया ने दाना चुगने के
लिए मेरे जाल की ओर कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। "पता है मैंने सिर्फ
तुम्हारे लिए मधु से बात की थी !" "डांस के बारे में ?" "अरे नहीं बुद्धू
कहीं की !" "तो ?" "मैं रंगीन टीवी की बात कर रहा हूँ !" "क्या मतलब ?" मैं उसकी तेज़ होती साँसों के साथ छाती के उठते गिरते उभार और अभिमानी चूचकों
को साफ़ देख रहा था। जब कोई मनचाही दुर्लभ चीज मिलने की आश बांध जाए तो मन
में उत्तेजना बहुत बढ़ जाती है। और फिर किसी भी कीमत पर उसे पा लेने को मन
ललचा उठता है। यही हाल अंगूर का था उस समय। "पता है मधुर तो उसे किसी को
बेचने वाली थी पर मैंने उसे साफ़ कह दिया कि अंगूर को रंगीन टीवी का बहुत
शौक है इसलिए यह टीवी तो सिर्फ 'मेरी अंगूर' के लिए ही है !" मैंने 'हमारी' की जगह 'मेरी अंगूर' जानबूझ कर बोला था। "क्या दीदी मान गई ?" उसे तो जैसे यकीन ही नहीं हो रहा था। "हाँ भई … पर वो बड़ी मुश्किल से मानी है !" "ओह … आप बहुत अच्छे हैं ! मैं किस मुँह से आपका धन्यवाद करूँ ?" वो तो जैसे
सतरंगी सपनों में ही खो गई थी। मैं जानता हूँ यह छोटी छोटी खुशियाँ ही इन
गरीबों के जीवन का आधार होती हैं। 'अरे मेरी जान इन गुलाबी होंठों से ही
करो ना' मैंने अपने मन में कहा। मैंने अपनी बात जारी रखते हुए उसे कहा "साथ में सी डी प्लेयर भी ले जाना पर कोई ऐसी वैसी फालतू फिल्म मत देख लेना !"
"ऐसी वैसी मतलब …. वो गन्दीवाली ?" जिस मासूमियत से उसने कहा था मैं तो मर
ही मिटा उसकी इस बात पर। वह बेख्याली में बोल तो गई पर जब उसे ध्यान आया तो वह तो शर्म के मारे गुलज़ार ही हो गई। "ये गन्दीवाली कौन सी होती है?"
मैंने हंसते हुए पूछा। "वो … वो … ओह …" उसने दोनों हाथों से अपना मुँह
छुपा लिया। मैं उसके नर्म नाज़ुक हाथों को पकड़ लेने का यह बेहतरीन मौका
भला कैसे छोड़ सकता था।मैंने उसका हाथ पकड़ते हुए पूछा "अंगूर बताओ ना ?"
"नहीं मुझे शर्म आती है ?"
इस्स्सस्स्स्सस्स्स ………………
इस सादगी पर कौन ना मर जाए ऐ खुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं ?
"वो... वो... आपकी चाय तो ठंडी हो गई !" कहते हुए अंगूर ठंडी चाय का कप उठा कर
रसोई में भाग गई। उसे भला मेरे अन्दर फूटते ज्वालामुखी की गर्मी का अहसास
और खबर कहाँ थी। उस रात मुझे और अंगूर को नींद भला कैसे आती दोनों की आँखों में कितने रंगीन सपने जो थे। यह अलग बात थी कि मेरे और उसके सपने जुदा थे। यह साला बांके बिहारी सक्सेना (हमारा पड़ोसी) भी उल्लू की दुम ही है। रात
को 12 बजे भी गाने सुन रहा है :
आओगे जब तुम हो साजना
अंगना ….. फूल…. खिलेंगे ….
सच ही है मैं भी तो आज अपनी इस नई शहजादी जोधा बनाम अंगूर के आने की कब से बाट जोह रहा हूँ।
अंगूर का दाना-3
उस रात मुझे और अंगूर को नींद भला कैसे आती दोनों की
आँखों में कितने रंगीन सपने जो थे। यह अलग बात थी कि मेरे और उसके सपने
जुदा थे। यह साला बांके बिहारी सक्सेना (हमारा पड़ोसी) भी उल्लू की दुम ही
है। रात को 12 बजे भी गाने सुन रहा है :
आओगे जब तुम हो साजना
अंगना ….. फूल…. खिलेंगे ….
सच ही है मैं भी तो आज अपनी इस नई शहजादी जोधा बनाम अंगूर के आने की कब से
बाट जोह रहा हूँ। रविवार सुबह सुबह नौ बजे ही मधु के भैया भाभी आ धमके।
अंगूर टीवी और सीडी प्लेयर लेकर घर चली गई थी। मधु ने उसे दो-तीन घंटे के
लिए घर भेज दिया ताकि उसे घर वालों की याद ना सताए। मधु की नज़र में तो वह
निरी बच्ची ही थी। उसे मेरी हालत का अंदाज़ा भला कैसे हो सकता था। मेरे लिए तो यह रविवार बोरियत भरा ही था। अंगूर के बिना यह घर कितना सूना सा लगता
है मैं ही जानता हूँ। बस अब तो सारे दिन रमेश और सुधा को झेलने वाली बात ही थी। वो शाम को वापस जाने वाले थे। मधु के लिए कुछ दवाइयां भी खरीदनी थी और राशन भी लेना था इसलिए मधुर ने अंगूर को भी हमारे साथ कार में भेज दिया।
उन दोनों को गाड़ी में बैठाने के बाद जब मैं स्टेशन से बाहर आया तो अंगूर
बेसब्री से कार में बैठी मेरा इंतज़ार कर रही थी। "आपने तो बहुत देर लगा दी ? दीदी घर पर अकेली होंगी मुझे जाकर खाना भी बनाना है ?" "अरे मेरी रानी
तुम चिंता क्यों करती हो ? खाना हम होटल से ले लेंगे" मैंने उसके गालों को
थपथपाते हुए कहा "अच्छा एक बात बताओ ?" उसके गाल तो रक्तिम ही हो गए। उसने
मुस्कुराते हुए पूछा "क्या ?" "तुम्हें खाने में क्या क्या पसंद है ?" "मैं तो कड़ाही पनीर और रसमलाई की बहुत शौक़ीन हूँ।" "हूँ ……" मैंने मन में तो
आया कह दूं 'मेरी जान रसमलाई तो में तुम्हें बहुत ही बढ़िया और गाढ़ी
खिलाऊंगा' पर मैंने कहा "और नमकीन में क्या पसंद हैं ?" "न... नमकीन में तो मुझे तीखी मिर्ची वाले चिप्स और पानीपूरी बहुत अच्छे लगते हैं" "चलो आज
फिर पानीपूरी और चिप्स ही खाते हैं। पर मिर्ची वाली चिप्स खाने से तुम्हारे होंठ तो नहीं जल जायेगे ?" मैंने हँसते हुए कहा "तो क्या हुआ … आप … उनको
भी मुँह में लेकर चूस देना या थूक लगा देना ?" वो हंसते हुए बोली।
आईलाआआआ ………..
मैं तो इस फिकरे पर मर ही
मिटा। जी में तो आया अभी कार में इस मस्त चिड़िया को चूम लूं पर सार्वजनिक
जगह पर ऐसा करना ठीक नहीं था। मैंने अपने आप को बड़ी मुश्किल से रोका।
मैंने अपने आप को समझाया कि बस अब तो इन रसभरे होंठों को चूम लेने का समय
आने ही वाला है थोड़ी देर और सही। रास्ते में हमने पानीपूरी, आइस क्रीम और
रसमलाई खाई और रात के लिए होटल से खाना पैक करवा लिया। मैंने उसके लिए एक
कलाई घड़ी, रंगीन चश्मा और चूड़ियाँ भी खरीदी। उसकी पसंद के माहवारी पैड्स
भी लिए। पहले तो मैंने सोचा इसे यहीं दे दूं फिर मुझे ख़याल आया ऐसा करना
ठीक नहीं होगा। अगर मधुर को जरा भी शक हो गया तो मेरा किया कराया सब मिट्टी
हो जाएगा। आप शायद हैरान हुए सोच रहे होंगे इन छोटी छोटी बातों को लिखने
का यहाँ क्या तुक है। ओह … आप अभी इन बातों को नहीं समझेंगे। मैंने उसके
लिए दो सेट ब्रा और पेंटीज के भी ले लिए। जब मैंने उसे यह समझाया कि इन
ब्रा पेंटीज के बारे में मधु को मत बताना तो उसने मेरी ओर पहले तो हैरानी
से देखा फिर रहस्यमई ढंग से मुस्कुराने लगी। उसके गाल तो इस कदर लाल हो गए
थे जैसे करीना कपूर के फिल्म जब वी मेट में शाहिद कपूर को चुम्मा देने के
बाद हो गए थे। कार में वो मेरे साथ आगे वाली सीट पर बैठी तीखी मिर्च वाली
चिप्स खा रही थी और सी सी किये जा रही थी। मैंने अच्छा मौका देख कर उस से
कहा "अंगूर ! अगर चिप्स खाने से होंठों में ज्यादा जलन हो रही है तो बता
देना मैं चूम कर थूक लगा दूंगा ?" पहले तो वो कुछ समझी नहीं बाद में तो
उसने दोनों हाथों से अपना चेहरा ही छिपा लिया।
हाय अल्लाह ………. मेरा दिल इतनी जोर से धड़कने लगा और साँसें तेज़ हो गई कि
मुझे तो लगने लगा मैं आज कोई एक्सीडेंट ही कर बैठूँगा। एक बार तो जी में
आया अभी चलती कार में ही इसे पकड़ कर रगड़ दूं। पर मैं जल्दबाजी में कोई
काम नहीं करना चाहता था। रात को जब अंगूर बाहर बैठी टीवी देख रही थी मधुर
ने बहुत दिनों बाद जम कर मेरा लंड चूसा और सारी की सारी रसमलाई पी गई। अगले
दो तीन दिन तो दफ्तर काम बहुत ज्यादा रहा। मैं तो इसी उधेड़बुन में लगा
रहा कि किस तरह अंगूर से इस बाबत बात की जाए। मुझे लगता था कि उसको भी मेरी
मनसा का थोड़ा बहुत अंदाजा तो जरूर हो ही गया है। जिस अंदाज़ में वो आजकल
मेरे साथ आँखें नचाती हुई बातें करती है मुझे लगता है वो जरूर मेरी मनसा
जानती है। अब तो वो अपने नितम्बों और कमर को इस कदर मटका कर चलती है जैसे
रैम्प पर कोई हसीना कैटवाक कर रही हो। कई बार तो वो झाडू लगाते या चाय
पकड़ाते हुए जानबूझ कर इतनी झुक जाती है कि उसके उरोज पूरे के पूरे दिख
जाते हैं। फिर मेरी ओर कनखियों से देखने का अंदाज़ तो मेरे पप्पू को बेकाबू
ही कर देता है। मेरे दिमाग में कई विचार घूम रहे थे। पहले तो मैंने सोचा
था कि मधु को रात में जो दर्द निवारक दवा और नींद की गोलियाँ देते हैं किसी
बहाने से अंगूर को भी खिला दूं और फिर रात में बेहोशी की हालत में सोये
अंगूर के इस दाने का रस पी जाऊं। पर … वो तो मधुर के साथ सोती है … ? दूसरा
यह कि मैं रात में मधुर के सोने के बाद डीवीडी प्लेयर में कोई ब्लू फिल्म
लगाकर बाथरूम चला जाऊं और पीछे से अंगूर उसे देख कर मस्त हो जाए। पर इसमें
जोखिम भी था। क्यों ना अनारकली से इस बाबत बात की जाये और उसे कुछ रुपयों
का लालच देकर उसे इस काम की जिम्मेदारी सोंपी जाए कि वो अंगूर को किसी तरह
मना ले। पर मुझे नहीं लगता कि अनारकली इसके लिए तैयार होगी। औरत तो औरत की
दुश्मन होती है वो कभी भी ऐसा नहीं होने देगी। हाँ अगर मैं चाहूँ तो उसको
भले ही कितनी ही बार आगे और पीछे दोनों तरफ से रगड़ दूँ वो ख़ुशी ख़ुशी सब
कुछ करवा लेगी। ओह … कई बार तो मेरे दिमाग काम करना ही बंद कर देता है।
मैंने अब तक भले ही कितनी ही लड़कियों और औरतों को बिना किसी लाग लपट और
झंझट के चोद लिया था और लगभग सभी की गांड भी मारी थी पर इस अंगूर के दाने
ने तो मेरा जैसे जीना ही हराम कर दिया है। एक बार ख़याल आया कि क्यों ना
इसे भी लिंग महादेव के दर्शन कराने ले जाऊं। मेरे पास मधुर के लिए मन्नत
माँगने का बहुत खूबसूरत बहाना भी था। और फिर रास्ते में मैं अपनी पैंट की
जिप खोल दूंगा और मोटर साइकिल पर मेरे पीछे बैठी इस चिड़िया को किसी मोड़
या गड्ढे पर इतना जोर से उछालूँ कि उसके पास मेरी कमर और लंड को कस कर पकड़
लेने के अलावा कोई चारा ही ना बचे। एक बार अगर उसने मेरा खड़ा लंड पकड़
लिया तो वो तो निहाल ही हो जायेगी। और उसके बाद तो बस सारा रास्ता ही जैसे
निष्कंटक हो जाएगा। काश कुछ ऐसा हो कि वो अपने आप सब कुछ समझ जाए और मुझे
ख़ुशी ख़ुशी अपना कौमार्य समर्पित कर दे। काश यह
अंगूर का गुच्छा अपने आप मेरी झोली में टपक जाए। मेरी प्यारी पाठिकाओ ! आप
मेरे लिए आमीन (तथास्तु-भगवान् करे ऐसा ही हो) तो बोल दो प्लीज। अब तो जो
होगा देखा जाएगा। मैंने तो ज्यादा सोचना ही बंद कर दिया है। ओह … पता नहीं
इस अंगूर के गुच्छे के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ेंगे। कई बार तो ऐसा लगता
है कि वो मेरी मनसा जानती है और अगर मैं थोड़ा सा आगे बढूँ तो वो मान
जायेगी। पर दूसरे ही पल ऐसा लगता है जैसे वो निरी बच्ची ही है और मेरा
प्यार से उसे सहलाना और मेरी चुहलबाजी को वो सिर्फ मज़ाक ही समझती है। अब
कल रात की ही बात लो। वो रसोई में खाना बना रही थी। मैंने उसके पीछे जाकर
पहले तो उसकी चोटी पकड़ी फिर उसके गालों पर चुटकी काट ली। "उई …. अम्मा
…….ऽऽ !" "क्या हुआ ?" "आप बहुत जोर से गालों को दबाते हैं … भला कोई इतनी
जोर से भींचता है ?" उसने उलाहना दिया। "चलो अबकी बार प्यार से सहलाउंगा…!" "ना…. ना … अभी नहीं … मुझे खाना बनाने दो। आप बाहर जाओ अगर दीदी ने देख
लिया तो आपको और मुझे मधु मक्खी की तरह काट खायेंगी या जान से मार डालेंगी
!" जिस अंदाज़ में उसने यह सब कहा था मुझे लगता ही वो मान तो जायेगी बस
थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ेगी। शनिवार था, शाम को जब मैं घर आया तो पता चला
कि दिन में कपड़े बदलते समय मधु का पैर थोड़ा हिल गया था और उसे बहुत जोर
से दर्द होने लगा था। फिर मैं भागा भागा डाक्टर के पास गया। उसने दर्द और
नींद की दवा की दोगुनी मात्रा दे देने को कह दिया। अगर फिर भी आराम नहीं
मिले तो वो घर आकर देख लेगा। मधु को डाक्टर के बताये अनुसार दवाई दे दी और
फिर थोड़ी देर बाद मधु को गहरी नींद आ गई। इस भागदौड़ में रात के 10 बज गए। तभी अंगूर मेरे पास आई और बोली, "दीदी ने तो आज कुछ खाया ही नहीं ! आपके
लिए खाना लगा दूं ?" "नहीं अंगूर मुझे भी भूख नहीं है !"
"ओह … पता है मैंने कितने प्यार से आपकी मनपसंद भरवाँ भिन्डी बनाई है !"
"अरे वाह … तुम्हें कैसे पता मुझे भरवाँ भिन्डी बहुत पसंद है ?" "मुझे आपकी
पसंद-नापसंद सब पता है !" उसने बड़ी अदा से अपनी आँखें नचाते हुए कहा। वह
अपनी प्रशंन्सा सुनकर बहुत खुश हो रही थी। "तुमने उसमें 4-5 बड़ी बड़ी
साबुत हरी मिर्चें डाली हैं या नहीं ?" "हाँ डाली है ना ! वो मैं कैसे भूल
सकती हूँ ?" "वाह … फिर तो जरूर तुमने बहुत बढ़िया ही बनाई होगी !" "अच्छा…
जी … ?" "क्योंकि मैं जानता हूँ तुम्हारे हाथों में जादू है !" "आपको कैसे
पता ? मेरा मतलब है वो कैसे …. ?" "वो उस दिन की बात भूल गई ?" "कौन सी
बात ?" "ओह…. तुम भी एक नंबर की भुल्लकड़ हो ? अरे भई उस दिन मैंने
तुम्हारी अंगुली मुँह में लेकर चूसी जो थी। उसका मिठास तो मैं अब तक नहीं
भूला हूँ !" "अच्छा … वो … वो … ओह …" वह कुछ सोचने लगी और फिर शरमा कर
रसोई की ओर जाने लगी। जाते जाते वो बोली, "आप हाथ मुँह धो लो, मैं खाना
लगाती हूँ !" वो जिस अंदाज़ में मुस्कुरा रही थी और मेरी ओर शरारत भरे
अंदाज़ में कनखियों से देखती हुई रसोई की ओर गई थी, यह अंदाज़ा लगाना कत्तई
मुश्किल नहीं था कि आज की रात मेरे और उसके लिए ख़्वाबों की हसीन रात
होगी। बाथरूम में मैं सोच रहा था यह कमसिन, चुलबुला, नादान और खट्टे मीठे
अंगूर का गुच्छा अब पूरी तरह से पक गया है। अब इसके दानों का रस पी लेने का
सही वक़्त आ गया है ….. अंगूर ने डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया था और
मुझे परोस रही थी। उसके कुंवारे बदन से आती मादक महक से मेरा तो रोम रोम ही
जैसे पुलकित सा हो कर झनझना रहा था। जैसे रात को अमराई (आमों के बाग़) से
आती मंजरी की सुगंध हो। आज उसने फिर वही गहरे हरे रंग की जोधपुरी कुर्ती और
गोटा लगा घाघरा पहना था। पता नहीं लहंगे के नीचे उसने कच्छी डाली होगी या
नहीं ? एक बार तो मेरा मन किया उसे पकड़ कर गोद में ही बैठा लूं। पर मैंने
अपने आप को रोक लिया। "अंगूर तुम भी साथ ही खा लो ना ?" "मैं ?" उसने
हैरानी से मेरी ओर देखा "क्यों … क्या हुआ ?" "वो... वो... मैं आपके साथ
कैसे … ?" वह थोड़ा संकोच कर रही थी। मैं जानता था अगर मैंने थोड़ा सा और
जोर दिया तो वो मेरे साथ बैठ कर खाना खाने को राज़ी हो जायेगी। मैंने उसका
हाथ पकड़ कर बैठाते हुए कहा "अरे इसमें कौन सी बड़ी बात है ? चलो बैठो !"
अंगूर सकुचाते हुए मेरे बगल वाली कुर्सी पर बैठ गई। उसने पहले मेरी थाली
में खाना परोसा फिर अपने लिए डाल लिया। खाना ठीक ठाक बना था पर मुझे तो
उसकी तारीफ़ के पुल बांधने थे। मैंने अभी पहला ही निवाला लिया था कि तीखी
मिर्च का स्वाद मुझे पता चल गया। "वाह अंगूर ! मैं सच कहता हूँ तुम्हारे
हाथों में तो जादू है जादू ! तुमने वाकई बहुत बढ़िया भिन्डी बनाई है !"
"पता है यह सब मुझे दीदी ने सिखाया है !" "अनार ने ?" "ओह … नहीं … मैं
मधुर दीदी की बात कर रही हूँ। अनार दीदी तो पता नहीं आजकल मुझ से क्यों
नाराज रहती है? वो तो मुझे यहाँ आने ही नहीं देना चाहती थी!" उसने मुँह
फुलाते हुए कहा। "अरे…. वो क्यों भला ?" मैंने हैरान होते पूछा। "ओह... बस …
आप उसकी बातें तो रहने ही दो। मैं तो मधुर दीदी की बात कर रही थी। वो तो
अब मुझे अपनी छोटी बहन की तरह मानने लगी हैं।" "फिर तो बहुत अच्छा है।"
"कैसे ?" "मधुर की कोई छोटी बहन तो है नहीं ? चलो अच्छा ही है इस बहाने
मुझे भी कम से कम एक खूबसूरत और प्यारी सी साली तो मिल गई।" उसने मेरी ओर
हैरानी से देखा। मैंने बात जारी रखी "देखो भई अगर वो तुम्हें अपनी छोटी बहन
मानती है तो मैं तो तुम्हारा जीजू ही हुआ ना?" "ओह्हो …. !" "पता है जीजू
साली का क्या सम्बन्ध होता है?" "नहीं मुझे नहीं मालूम ! आप ही बता दो !"
वो अनजान बनने का नाटक करती मंद मंद मुस्कुरा रही थी। "तुम बुरा तो नहीं
मान जाओगी ?" "मैंने कभी आपकी किसी बात का बुरा माना है क्या ?" "ओह...
मेरी प्यारी सालीजी… तुम बहुत ही नटखट और शरारती हो गई हो आजकल !" मैंने
उसकी पीठ पर हल्का सा धौल जमाते हुए कहा। "वो कैसे ?" "देखो तुमने वो मधु
द्वारा छोटी बहन बना लेने वाली बात मुझे कितने दिनों बाद बताई है ?" "क्या
मतलब ?" "ओह … मैं इसीलिए तो कहता हूँ तुम बड़ी चालाक हो गई हो आजकल। अब
अगर तुम मधुर को अपनी दीदी की तरह मानती हो तो अपने जीजू से इतनी दूर दूर
क्यों रहती हो?" "नहीं तो … मैं तो आपको अपने सगे जीजू से भी अधिक मानती
हूँ। पर वो तो बस मेरे पीछे ही पड़ा रहता है !" "अरे…. वो किस बात के लिए
?" "बस आप रहने ही दो उसकी बात तो … वो... तो...वो…. तो बस एक ही चीज के
पीछे …!" मेरा दिल जोर से धड़कने लगा। कहीं उस साले टीटू के बच्चे ने इस
अंगूर के दाने को रगड़ तो नहीं दिया होगा। अनारकली शादी के बाद शुरू शुरू
में बताया करती थी कि टीटू कई बार उसकी भी गांड मारता है उसे कसी हुई चूत
और गांड बहुत अच्छी लगती है। मैंने फिर से उसे कुरेदा "ओह … अंगूर …अब इतना
मत शरमाओ प्लीज बता दो ना ?" "नहीं मुझे शर्म आती है … एक नंबर का लुच्चा
है वो तो !" उसके चहरे का रंग लाल हो गया था। साँसें तेज़ हो रही थी। वो
कुछ कहना चाह रही थी पर शायद उसे बोलने में संकोच अनुभव हो रहा था। मैं
उसके मन की दुविधा अच्छी तरह जानता था। मैंने पूछा "अंगूर एक बात बताओ ?"
"क्या ?" "अगर मैं तुमसे कुछ मांगूं या करने को कहूं तो तुम क्या करोगी ?"
"आपके लिए तो मेरी यह जान भी हाज़िर है !" 'अरे मेरी जान मैं तुम्हारी जान
लेकर क्या करूँगा मैं तो उस अनमोल खजाने की बात कर रहा हूँ जो तुमने इतने
जतन से अभी तक संभाल कर रखा है।' अचानक मेरे दिमाग में एक योजना घूम गई।
मैंने बातों का विषय बदला और उस से पूछा "अच्छा चलो एक बात बोलूँ अंगूर ?"
"क्या ?" "तुम इन कपड़ों में बहुत खूबसूरत लग रही हो ?" "अच्छा ?" "हाँ
इनमें तो तुम जोधा अकबर वाली एश्वर्या राय ही लग रही हो ?" "हाँ दीदी भी
ऐसा ही बोलती हैं !" "कौन मधुर ?" "हाँ … वो तो कहती हैं कि अगर मेरी
लम्बाई थोड़ी सी ज्यादा होती और आँखें बिल्लोरी होती तो मैं एश्वर्या राय
जितनी ही खूबसूरत लगती !" "पर मेरे लिए तो तुम अब भी एश्वर्या राय ही हो ?"
मैंने हंसते हुए उसके गालों पर चुटकी काटते हुए कहा। उसने शरमा कर अपने
नज़रें झुका ली। हम लोग खाना भी खाते जा रहे थे और साथ साथ बातें भी करते
जा रहे थे। खाना लगभग ख़त्म हो ही गया था। अचानक अंगूर जोर जोर से सी …..
सी ….. करने लगी। शायद उसने भिन्डी के साथ तीखी साबुत हरी मिर्च पूरी की
पूरी खा ली थी। "आईईइइ … सीईईई ?' "क्या हुआ ?" "उईईईइ अम्माआ …… ये मिर्ची
तो बहुत त… ती….. तीखी है …!" "ओह … तुम भी निरी पागल हो भला कोई ऐसे पूरी
मिर्ची खाता है ?" "ओह... मुझे क्या पता था यह इतनी कड़वी होगी मैंने तो
आपको देखकर खा ली थी? आईइइ… सीईई …" "चलो अब वाश-बेसिन पर … जल्दी से ठन्डे
पानी से कुल्ली कर लो !" मैंने उसे बाजू से पकड़ कर उठाया और इस तरह अपने
आप से चिपकाए हुए वाशबेसिन की ओर ले गया कि उसका कमसिन बदन मेरे साथ चिपक
ही गया। मैं अपना बायाँ हाथ उसकी बगल में करते हुए उसके उरोजों तक ले आया।
वो तो यही समझती रही होगी कि मैं उसके मुँह की जलन से बहुत परेशान और
व्यथित हो गया हूँ। उसे भला मेरी मनसा का क्या भान हुआ होगा। गोल गोल कठोर
चूचों के स्पर्श से मेरी अंगुलियाँ तो धन्य ही हो गई। वाशबेसिन पर मैंने
उसे अपनी चुल्लू से पानी पिलाया और दो तीन बार उसने कुल्ला किया। उसकी जलन
कुछ कम हो गई। मैंने उसके होंठों को रुमाल से पोंछ दिया। वो तो हैरान हुई
मेरा यह दुलार और अपनत्व देखती ही रह गई। मैंने अगला तीर छोड़ दिया "अंगूर
अब भी जलन हो रही हो तो एक रामबाण इलाज़ और है मेरे पास !"
 
अंगूर का दाना-4
 
"आईईइइ ... सीईईई ?'
"क्या हुआ ?"
"उईईईइ अम्माआ
...... ये मिर्ची तो बहुत त... ती..... तीखी है ...!" "ओह ... तुम भी निरी
पागल हो भला कोई ऐसे पूरी मिर्ची खाता है ?" "ओह... मुझे क्या पता था यह
इतनी कड़वी होगी मैंने तो आपको देखकर खा ली थी? आईइइ... सीईई ..." "चलो अब
वाश-बेसिन पर ... जल्दी से ठन्डे पानी से कुल्ली कर लो !" मैंने उसे बाजू
से पकड़ कर उठाया और इस तरह अपने आप से चिपकाए हुए वाशबेसिन की ओर ले गया
कि उसका कमसिन बदन मेरे साथ चिपक ही गया। मैं अपना बायाँ हाथ उसकी बगल में
करते हुए उसके उरोजों तक ले आया। वो तो यही समझती रही होगी कि मैं उसके
मुँह की जलन से बहुत परेशान और व्यथित हो गया हूँ। उसे भला मेरी मनसा का
क्या भान हुआ होगा। गोल गोल कठोर चूचों के स्पर्श से मेरी अंगुलियाँ तो
धन्य ही हो गई। वाशबेसिन पर मैंने उसे अपनी चुल्लू से पानी पिलाया और दो
तीन बार उसने कुल्ला किया। उसकी जलन कुछ कम हो गई। मैंने उसके होंठों को
रुमाल से पोंछ दिया। वो तो हैरान हुई मेरा यह दुलार और अपनत्व देखती ही रह
गई। मैंने अगला तीर छोड़ दिया,"अंगूर अब भी जलन हो रही हो तो एक रामबाण
इलाज़ और है मेरे पास !" "वो... क्या ... सीईईईईईईई ?" उसकी जलन कम तो हो
गई थी पर फिर भी वो होले होले सी... सी.... करती जा रही थी। "कहो तो इन
होंठों और जीभ को अपने मुँह में लेकर चूस देता हूँ, जलन ख़त्म हो जायेगी !"
मैंने हंसते हुए कहा। मैं जानता था वो मना कर देगी और शरमा कर भाग जायगी।
पर मेरी हैरानी की सीमा ही नहीं रही जब उसने अपनी आँखें बंद करके अपने होंठ
मेरी ओर बढ़ा दिए। सच पूछो तो मेरे लिए भी यह अप्रत्याशित सा ही था। मेरा
दिल जोर जोर से धड़क रहा था। मैंने देखा उसकी साँसें भी बहुत तेज़ हो गई
हैं। उसके छोटे छोटे गोल गोल उरोज गर्म होती तेज़ साँसों के साथ ऊपर-नीचे
हो रहे थे। मैंने उसके नर्म नाज़ुक होंठों पर अपने होंठ रख दिए। आह ...
उसके रुई के नर्म फोहे जैसे संतरे की फांकों और गुलाब की पत्तियों जैसे
नाज़ुक अधरों की छुअन मात्र से ही मेरा तो तन मन सब अन्दर तक तरंगित ही हो
गया। अचानक उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और मेरे होंठों को चूसने
लगी। मैंने भी दोनों हाथों से उसका सिर थाम लिया और एक दूसरे से चिपके पता
नहीं कितनी देर हम एक दूसरे को चूमते सहलाते रहे। मेरा पप्पू तो जैसे भूखे
शेर की तरह दहाड़ें ही मारने लगा था। मैंने धीरे से पहले तो उसकी पीठ पर
फिर उसके नितम्बों पर हाथ फिराया फिर उसकी मुनिया को टटोलना चाहा। अब उसे
ध्यान आया कि मैं क्या करने जा रहा हूँ। उसने झट से मेरा हाथ पकड़ लिया और
कुनमुनाती सी आवाज में बोली,"उईई अम्मा ...... ओह.... नहीं !... रुको !"वो
कोशिश कर रही थी कि मेरा हाथ उसके अनमोल खजाने तक ना पहुँचे। उसने अपने आप
को बचाने के लिए घूम कर थोड़ा सा आगे की ओर झुका लिया जिसके कारण उसके
नितम्ब मेरे लंड से आ टकराए। वह मेरा हाथ अपनी बुर से हटाने का प्रयास करने
लगी। "क्यों क्या हुआ ?" "ओह्हो... अभी मुझे छोड़िये। मुझे बहुत काम करना
है !" "क्या काम करना है ?" "अभी बर्तन समेटने हैं, आपके लिए दूध गर्म करना
है .... और ... !" "ओह... छोड़ो दूध-वूध मुझे नहीं पीना !" "ओहो ... पर
मुझे आपने दोहरी कर रखा है छोड़ो तो सही !" "अंगूर ... मेरी प्यारी अंगूर
प्लीज ... बस एक बार मुझे अपनी मुनिया देख लेने दो ना ?" मैंने गिड़गिड़ाने
वाले अंदाज़ में कहा। "नहीं मुझे शर्म आती है !" "पर तुमने तो कहा था मैं
जो मांगूंगा तुम मना नहीं करगी ?" "नहीं ... पहले आप मुझे छोड़ो !" मैंने
उसे छोड़ दिया, वो अपनी कलाई दूसरे हाथ से सहलाती हुई बोली,"कोई इतनी जोर
से कलाई मरोड़ता है क्या ?" "कोई बात नहीं ! मैं उसे भी चूम कर ठीक कर देता
हूँ !" कहते हुए मैं दुबारा उसे बाहों में भर लेने को आगे बढ़ा। "ओह...
नहीं नहीं.... ऐसे नहीं ? आपसे तो सबर ही नहीं होता...." "तो फिर ?" "ओह...
थोड़ी देर रुको तो सही ... आप अपने कमरे में चलो मैं वहीं आती हूँ !" मेरी
प्यारी पाठिकाओ और पाठको ! अब तो मुझे जैसे इस जहाँ की सबसे अनमोल दौलत ही
मिलने जा रही थी। जिस कमसिन कलि के लिए मैं पिछले 10-12 दिनों से मरा ही
जा रहा था बस अब तो दो कदम दूर ही रह गई है मेरी बाहों से। हे ... लिंग
महादेव तेरा लाख लाख शुक्र है पर यार अब कोई गड़बड़ मत होने देना। अंगूर
नज़रें झुकाए बिना मेरी ओर देखे जूठे बर्तन उठाने लगी और मैंने ड्राइंग रूम
में रखे टेलीफोन का रिसीवर उतार कर नीचे रख दिया और अपने मोबाइल का स्विच
भी ऑफ कर दिया। मैं किसी प्रकार का कोई व्यवधान आज की रात नहीं चाहता था।
मैं धड़कते दिल से अंगूर का इंतज़ार कर रहा था। मेरे लिए तो एक एक पल जैसे
एक एक पहर की तरह था। कोई 20 मिनट के बाद अंगूर धीरे धीरे कदम बढ़ाती कमरे
में आ गई। उसके अन्दर आते ही मैंने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और उसे फिर
से बाहों में भर कर इतनी जोर से भींचा कि उसकी तो हलकी सी चीख ही निकल गई।
मैंने झट से उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया और उन्हें चूसने लगा। वो
भी मेरे होंठ चूसने लगी। फिर मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी। वो
मेरी जीभ को कुल्फी की तरह चूसने लगी। अब हालत यह थी कि कभी मैं वो मेरी
जीभ चूसने लगती कभी मैं उसकी मछली की तरह फुदकती मचलती जीभ को मुँह में
पूरा भर कर चूसने लगता। "ओह... मेरी प्यारी अंगूर ! मैं तुम्हारे लिए बहुत
तड़पा हूँ !" "अच्छा.... जी वो क्यों ?" "अंगूर, तुमने अपनी मुनिया दिखाने
का वादा किया था !" "ओह ... अरे... वो ... नहीं... मुझे शर्म आती है !"
"देखो तुम मेरी प्यारी साली हो ना ?" मैंने घाघरे के ऊपर से ही उसकी मुनिया
को टटोला। "नहीं... नहीं ऐसे नहीं ! पहले आप यह लाईट बंद कर दो !" "ओह,
फिर अँधेरे में मैं कैसे देखूंगा ?" "ओह्हो... आप भी... अच्छा तो फिर आप
अपनी आँखें बंद कर लो !" "तुम भी पागल तो नही हुई ? अगर मैंने अपनी आँखें
बंद कर ली तो फिर मुझे क्या दिखेगा ?" "ओह्हो ... अजीब मुसीबत है ...?"
कहते हुए उसने अपने हाथों से अपना चेहरा ही ढक लिया। यह तो उसकी मौन
स्वीकृति ही थी मेरे लिए। मैंने होले से उसे बिस्तर पर लेटा सा दिया। पर
उसने तो शर्म के मारे अपने हाथों को चेहरे से हटाया ही नहीं। उसकी साँसें
अब तेज़ होने लगी थी और चेहरे का रंग लाल गुलाब की तरह हो चला था। मैंने
हौले से उसका घाघरा ऊपर कर दिया। मेरे अंदाज़े के मुताबिक़ उसने कच्छी
(पेंटी) तो पहनी ही नहीं थी।
उफ्फ्फ्फ़ ......
उस जन्नत के नज़ारे को
तो मैं जिन्दगी भर नहीं भूल पाऊंगा। मखमली गोरी जाँघों के बीच हलके रेशमी
घुंघराले काले काले झांटों से ढकी उसकी चूत की फांकें एक दम गुलाबी थी।
मेरे अंदाज़े के मुताबिक़ चीरा केवल 3 इंच का था। दोनों फांकें आपस में
जुड़ी हुई ऐसे लग रही थी जैसे किसी तीखी कटार की धार ही हो। बीच की रेखा तो मुश्किल से 3 सूत चौड़ी ही होगी एक दम कत्थई रंग की। मैं तो फटी आँखों से
उसे देखता ही रह गया। हालांकि अंगूर मिक्की से उम्र में थोड़ी बड़ी थी पर
उन दोनों की मुनिया में रति भर का भी फर्क नहीं था। मैं अपने आप को कैसे
रोक पता मैंने अपने जलते होंठ उन रसभरी फांकों पर लगा दिए। मेरी गर्म
साँसें जैसे ही उसे अपनी मुनिया पर महसूस हुई उसकी रोमांच के मारे एक
किलकारी ही निकल गई और उसके पैर आपस में जोर से भींच गए। उसका तो सारा शरीर ही जैसे कांपने लगा था। मेरी भी कमोबेश यही हालत थी। मेरे नथुनों में हलकी पेशाब, नारियल पानी और गुलाब के इत्र जैसी सोंधी-सोंधी खुशबू समा गई। मुझे पता है वो जरूर बॉडी स्प्रे लगा कर आई होगी। उसने जरूर मधु को कभी ऐसा
करते देखा होगा। मैंने उसकी मुनिया पर एक चुम्बन ले लिया। चुम्बन लेते समय
मैं यह सोच रहा था कि अगर अंगूर इन बालों को साफ़ कर ले तो इस छोटी सी
मुनिया को चूसने का मज़ा ही आ जाए। मैं अभी उसे मुँह में भर लेने की सोच ही रहा था कि उसके रोमांच में डूबी आवाज मेरे कानों में पड़ी,"ऊईइ .....
अम्माआआ ..." वो झट से उठ खड़ी हुई और उसने अपने घाघरे को नीचे कर लिया।
मैंने उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा,"अंगूर तुम बहुत खूबसूरत हो !" पहले तो उसने मेरी ओर हैरानी से देखा फिर ना जाने उसे क्या सूझा, उसने मुझे
अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और मुझ से लिपट ही गई। मैं पलंग पर अपने
पैर मोड़ कर बैठा था। वो अपने दोनों पैर चौड़े करके मेरी गोद में बैठ गई।
जैसे कई बार मिक्की बैठ जाया करती थी। मेरा खड़ा लंड उसके गोल गोल नर्म
नाज़ुक कसे नितम्बों के बीच फस कर पिसने लगा। मैंने एक बार फिर से उसके
होंठों को चूमना चालू कर दिया तो उसकी मीठी सित्कारें निकालने लगी। "अंगूर
...?" "हम्म्म ... ?"
"कैसा लग रहा है ?" "क्या ?" उसने अपनी आँखें नचाई तो मैंने उसके होंठों को
इतने जोर से चूसा कि उसकी तो हल्की सी चीख ही निकल गई। पहले तो उसने मेरे
सीने पर अपने दोनों हाथों से हलके से मुक्के लगाए और फिर उसने मेरे सीने पर
अपना सिर रख दिया। अब मैं कभी उसकी पीठ पर हाथ फिराता और कभी उसके
नितम्बों पर। "अंगूर तुम्हारी मुनिया तो बहुत खूबसूरत है !" "धत्त ... !"
वह मदहोश करने वाली नज़रों से मुझे घूरती रही। "अंगूर तुम्हें इस पर बालों
का यह झुरमुट अच्छा लगता है क्या ?" "नहीं .... अच्छा तो नहीं लगता...
पर...?" "तो इनको साफ़ क्यों नहीं करती ?" "मुझे क्या पता कैसे साफ़ किये
जाते हैं ?" "ओह ... क्या तुमने कभी गुलाबो या अनार को करते नहीं देखा...?
मेरा मतलब है... वो कैसे काटती हैं ?" "अम्मा तो कैंची से या कभी कभी रेज़र
से साफ़ करती है।" "तो तुम भी कर लिया करो !" "मुझे डर लगता है !" "डर
कैसा ?" "कहीं कट गया तो ?" "तो क्या हुआ मैं उसे भी चूस कर ठीक कर दूंगा
!" मैं हंसने लगा। पहले तो वो समझी नहीं फिर उसने मुझे धकेलते हुए
कहा,"धत्त ... हटो परे...!" "अंगूर प्लीज आओ मैं तुम्हें इनको साफ़ करना
सिखा देता हूँ। फिर तुम देखना इसकी ख़ूबसूरती में तो चार चाँद ही लग
जायेंगे ?" "नहीं मुझे शर्म आती है ! मैं बाद में काट लूंगी।" "ओहो ... अब
यह शर्माना छोड़ो ... आओ मेरे साथ !" मैं उसे अपनी गोद में उठा लिया और हम
बाथरूम में आ गए। बाथरूम उस कमरे से ही जुड़ा है और उसका एक दरवाजा अन्दर
से भी खुलता है। मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओ ! आप जरूर सोच रहे होंगे यार
प्रेम गुरु तुम भी अजीब अहमक इंसान हो ? लौंडिया चुदने को तैयार बैठी है
और तुम्हें झांटों को साफ़ करने की पड़ी है। अमा यार ! अब ठोक भी दो साली
को ! क्यों बेचारी की मुनिया और अपने खड़े लंड को तड़फा रहे हो ? आप अपनी
जगह सही हैं। मैं जानता हूँ यह कथानक पढ़ते समय पता नहीं आपका लंड कितनी
बार खड़ा हुआ होगा या इस दौरान आपके मन में मुट्ठ मार लेने का ख़याल आया
होगा और मेरी प्यारी पाठिकाएं तो जरूर अपनी मुनिया में अंगुली कर कर के
परेशान ही हो गई होंगी। पर इतनी देरी करने का एक बहुत बड़ा कारण था। आप
मेरा यकीन करें और हौंसला रखें बस थोड़ा सा इंतज़ार और कर लीजिये। मैं और
आप सभी साथ साथ ही उस स्वर्ग गुफा में प्रवेश करने का सुख, सौभाग्य, आनंद
और लुफ्त उठायेगे और जन्नत के दूसरे दरवाजे का भी उदघाटन करेंगे। दरअसल मैं
उसके कमसिन बदन का लुत्फ़ आज ठन्डे पानी के फव्वारे के नीचे उठाना चाहता
था। वैसे भी भरतपुर में गर्मी बहुत ज्यादा ही पड़ती है। आप तो जानते ही हैं
मैं और मधुर सन्डे को साथ साथ नहाते हैं और बाथटब में बैठे घंटों एक दूसरे
के कामांगों से खेलते हुए चुहलबाज़ी करते रहते हैं। कभी कभी तो मधुर इतनी
उत्तेजित चुलबुली हो जाया करती है कि गांड भी मरवा लेती है। पर इन दिनों
में मधुर के साथ नहाना और गांड मारना तो दूर की बात है वो तो मुझे चुदाई के
लिए भी तरसा ही देती है। आज इस कमसिन बला के साथ नहा कर मैं फिर से अपनी
उन सुनहरी यादों को ताज़ा कर लेना चाहता था। बाथरूम में आकर मैंने धीरे से
अंगूर को गोद से उतार दिया। वो तो मेरे साथ ऐसे चिपकी थी जैसे कोई लता किसी
पेड़ से चिपकी हो। वो तो मुझे छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। मैंने
कहा,"अंगूर तुम अपने कपड़े उतार दो ना प्लीज ?" "वो ... क्यों भला ...?"
"अरे बाबा मुनिया की सफाई नहीं करवानी क्या ?" "ओह ... !" उसने अपने हाथों
से अपना मुँह फिर से छुपा लिया। मैंने आगे बढ़ कर उसके घाघरे का नाड़ा खोल
दिया और फिर उसकी कुर्ती भी उतार दी। आह...
ट्यूब लाईट की दूधिया रोशनी में उसका सफ्फाक बदन तो कंचन की तरह चमक रहा
था। उसने एक हाथ अपनी मुनिया पर रख लिया और दूसरे हाथ से अपने छोटे छोटे
उरोजों को छुपाने की नाकाम सी कोशिश करने लगी। मैं तो उसके इस भोलेपन पर मर
ही मिटा। उसके गोल गोल गुलाबी रंग के उरोज तो आगे से इतने नुकीले थे जैसे
अभी कोई तीर छोड़ देंगे। मुझे एक बात की बड़ी हैरानी थी कि उसकी मुनिया और
कांख (बगल) को छोड़ कर उसके शरीर पर कहीं भी बाल नहीं थे। आमतौर पर इस उम्र
में लड़कियों के हाथ पैरों पर भी बाल उग आते हैं और वो उन्हें वैक्सिंग से
साफ़ करना चालू कर देती हैं। पर कुछ लड़कियों के चूत और कांख को छोड़ कर
शरीर के दूसरे हिस्सों पर बाल या रोयें बहुत ही कम होते हैं या फिर होते ही
नहीं। अब आप इतने भोले भी नहीं हैं कि आपको यह भी बताने कि जरूरत पड़े कि
वो तो हुश्न की मल्लिका ही थी उसके शरीर पर बाल कहाँ से होते। मैं तो फटी
आँखों से सांचे में ढले इस हुस्न के मंजर को बस निहारता ही रह गया। "वो...
वो ... ?" "क्या हुआ ?" "मुझे सु सु आ रहा है ?" "तो कर लो ! इसमें क्या
हुआ ?" "नहीं आप बाहर जाओ ... मुझे आपके सामने करने में शर्म आती है !"
"ओह्हो ... अब इसमें शर्म की क्या बात है ? प्लीज मेरे सामने ही कर लो ना
?" वो मुझे घूरती हुई कमोड पर बैठने लगी तो मैंने उसे रोका,"अर्ररर ...
कमोड पर नहीं नीचे फर्श पर बैठ कर ही करो ना प्लीज !" उसने अजीब नज़रों से
मुझे देखा और फिर झट से नीचे बैठ गई। उसने अपनी जांघें थोड़ी सी फैलाई और
फिर उसकी मुनिया के दोनों पट थोड़े से खुले। पहले 2-3 बूँदें निकली और उसकी
गांड के छेद से रगड़ खाती नीचे गिर गई। फिर उसकी फांकें थरथराने लगी और
फिर तो पेशाब की कल-कल करती धारा ऐसे निकली कि उसके आगे सहस्त्रधारा भी
फीकी थी। उसकी धार कोई एक डेढ़ फुट ऊंची तो जरूर गई होगी। सु सु की धार
इतनी तेज़ थी कि वो लगभग 3 फुट दूर तक चली गई। उसकी बुर से निकलती फ़ीच...
च्चच..... सीईई इ ....... का सिसकारा तो ठीक वैसा ही था जैसा लिंग महादेव
मंदिर से लौटते हुए मिक्की का था। हे भगवान् ! क्या मिक्की ही अंगूर के रूप
में कहीं दुबारा तो नहीं आ गई ? मैं तो इस मनमोहक नज़ारे को फटी आँखों से
देखता ही रह गया। मुझे अपनी बुर की ओर देखते हुए पाकर उसने अपना सु सु
रोकने की नाकाम कोशिश की पर वो तो एक बार थोड़ा सा मंद होकर फिर जोर से
बहने लगा। आह एक बार वो धार नीचे हुई फिर जोर से ऊपर उठी। ऐसे लगा जैसे
उसने मुझे सलामी दी हो।शादी के शुरू शुरू के दिनों में मैं और मधुर कई बार
बाथरूम में इस तरह की चुहल किया करते थे। मधु अपनी जांघें चौड़ी करके नीचे
फर्श पर लेट जाया करती थी और फिर मैं उसकी मुनिया की दोनों फांकों को चौड़ा
कर दिया करता था। फिर उसकी मुनिया से सु सु की धार इतनी तेज़ निकलती कि 3
फुट ऊपर तक चली जाती थी। आह ... कितनी मधुर सीटी जैसी आवाज निकलती थी उसकी
मुनिया से। मैं अपने इन ख़यालों में अभी खोया ही था कि अब उसकी धार थोड़ी
मंद पड़ने लगी और फिर एक बार बंद होकर फिर एक पतली सी धार निकली। उसकी लाल
रंग की फांके थरथरा रही थी जैसे। कभी संकोचन करती कभी थोड़ी सी खुल जाती।
अंगूर अब खड़ी हो गई। मैंने आगे बढ़ कर उसकी मुनिया को चूमना चाहा तो पीछे
हटते हुए बोली,"ओह ... छी .... छी .... ये क्या करने लगे आप ?" "अंगूर एक
बार इसे चूम लेने दो ना प्लीज .... देखो कितनी प्यारी लग रही है !" "छी
.... छी .... इसे भी कोई चूमता है ?" मैंने अपने मन में कहा 'मेरी जान
थोड़ी देर रुक जाओ फिर तो तुम खुद कहोगी कि 'और जोर से चूमो मेरे साजन' पर
मैंने उससे कहा,"चलो कोई बात नहीं तुम अपना एक पैर कमोड पर रख लो। मैं
तुम्हारे इस घास की सफाई कर देता हूँ !" उसने थोड़ा सकुचाते हुए बिना
ना-नुकर के इस बार मेरे कहे मुताबिक़ एक पैर कमोड पर रख दिया। आह ... उसकी
छोटी सी बुर और 3 इंच का रक्तिम चीरा तो अब साफ़ नज़र आने लगा था। हालांकि
उसकी फांकें अभी भी आपस में जुड़ी हुई थी पर उनका नज़ारा देख कर तो मेरे
पप्पू ने जैसे उधम ही मचा दिया था। मैंने अपने शेविंग किट से नया
डिस्पोजेबल रेज़र निकला और फिर हौले-हौले उसकी बुर पर फिराना चालू कर दिया।
उसे शायद कुछ गुदगुदी सी होने लगी थी तो वो थोड़ा पीछे होने लगी तो मैंने
उसे समझाया कि अगर हिलोगी तो यह कट जायेगी फिर मुझे दोष मत देना। उसने मेरा
सिर पकड़ लिया। उसकी बुर पर उगे बाल बहुत ही नर्म थे। लगता था उसने कमरे
में आने से पहले पानी और साबुन से अपनी मुनिया को अच्छी तरह धोया था। 2-3
मिनट में ही मुनिया तो टिच्च ही हो गई। आह ... उसकी मोटी मोटी फांकें तो
बिलकुल संतरे की फांकों जैसी एक दम गुलाबी लग रही थी। फिर मैंने उसके बगलों
के बाल भी साफ़ कर दिए। बगलों के बाल थोड़े से तो थे। जब बाल साफ़ हो गए
तो मैंने शेविंग-लोशन उसकी मुनिया पर लगा कर हैण्ड शावर उठाया और उसकी
मुनिया को पानी की हल्की फुहार से धो दिया। फिर पास रखे तौलिये से उसकी
मुनिया को साफ़ कर दिया। इस दौरान मैं अपनी एक अंगुली को उसकी मुनिया के
चीरे पर फिराने से बाज नहीं आया। जैसे ही मेरी अंगुली उसकी मुनिया से लगी
वो थोड़ी सी कुनमुनाई। "ऊईईइ.... अम्माआ ....!" "क्या हुआ ?" "ओह ... अब
मेरे कपड़े दे दो ....!" उसने अपने दोनों हाथ फिर से अपनी मुनिया पर रख
लिए। "क्यों ?" "ओह ... आपने तो मुझे बेशर्म ही बना दिया !" "वो कैसे ?"
"और क्या ? आपने तो सारे कपड़े पहन रखे हैं और मुझे बिलकुल नंगा ....?" वह
तो बोलते बोलते फिर शरमा ही गई ...... "अरे मेरी भोली बन्नो ... इसमें क्या
है, लो मैं भी उतार देता हूँ।" मैंने अपना कुरता और पजामा उतार फेंका। अब
मेरे बदन पर भी एक मात्र चड्डी ही रह गई थी। मैंने अपनी चड्डी जानबूझ कर
नहीं उतारी थी। मुझे डर था कहीं मेरा खूंटे सा खड़ा लंड देख कर वो घबरा ही
ना जाए और बात बनते बनते बिगड़ जाए। मैं इस हाथ आई मछली को इस तरह फिसल
जाने नहीं देना चाहता था। मेरा पप्पू तो किसी खार खाए नाग की तरह अन्दर
फुक्कारें ही मार रहा था। मुझे तो लग रहा था अगर मैंने चड्डी नहीं उतारी तो
यह उसे फाड़ कर बाहर आ जाएगा। "उईइ ... यह तो चुनमुनाने लगी है ?" उसने
अपनी जांघें कस कर भींच ली। शायद कहीं से थोड़ा सा कट गया था जो
शेविंग-लोशन लगने से चुनमुनाने लगा था। "कोई बात नहीं इसका इलाज़ भी है
मेरे पास !" उसने मेरी ओर हैरानी से देखा। मैं नीचे पंजों के बल बैठा गया
और एक हाथ से उसके नितम्बों को पकड़ कर उसे अपनी और खींच लिया और फिर मैंने
झट से उसकी मुनिया को अपने मुँह में भर लिया। वो तो,"उईइ इ ... ओह
......... नहीं .... उईईईई इ .... क्या कर रहे हो ... आह ..........." करती
ही रह गई। मैंने जैसे ही एक चुस्की लगाई उसकी सीत्कार भरी किलकारी निकल
गई। उसकी बुर तो अन्दर से गीली थी। नमकीन और खट्टा सा स्वाद मेरी जीभ से लग
गया। उसकी कुंवारी बुर से आती मादक महक से मैं तो मस्त ही हो गया। उसने
अपने दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़ लिया। अब मैंने अपनी जीभ को थोड़ा सा
नुकीला बनाया और उसकी फांकों के बीच में लगा कर ऊपर नीचे करने लगा। मेरे
ऐसा करने से उसे रोमांच और गुदगुदी दोनों होने लगे। मैंने अपने एक हाथ की
एक अंगुली उसकी मुनिया के छेद में होले से डाल दी। आह उसकी बुर के कसाव और
गर्मी से मेरी अंगुली ने उसकी बुर के कुंवारेपन को महसूस कर ही लिया। "ईईइ
..... बाबू ... उईईइ ... अम्मा ........ ओह ... रुको ... मुझे ... सु सु
.... आ ... रहा है .... ऊईइ ... ओह ... छोड़ो मुझे.... ओईईइ ... अमाआआ ....
अह्ह्ह .... य़ाआअ ..... !!"
 
अंगूर का दाना-5
उसने मेरी ओर हैरानी से देखा। मैं नीचे पंजों के बल
बैठा गया और एक हाथ से उसके नितम्बों को पकड़ कर उसे अपनी और खींच लिया और
फिर मैंने झट से उसकी मुनिया को अपने मुँह में भर लिया। वो तो,"उईइ इ ...
ओह ......... नहीं .... उईईईई इ .... क्या कर रहे हो ... आह ..........."
करती ही रह गई। मैंने जैसे ही एक चुस्की लगाई उसकी सीत्कार भरी किलकारी
निकल गई। उसकी बुर तो अन्दर से गीली थी। नमकीन और खट्टा सा स्वाद मेरी जीभ
से लग गया। उसकी कुंवारी बुर से आती मादक महक से मैं तो मस्त ही हो गया।
उसने अपने दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़ लिया। अब मैंने अपनी जीभ को थोड़ा
सा नुकीला बनाया और उसकी फांकों के बीच में लगा कर ऊपर नीचे करने लगा। मेरे ऐसा करने से उसे रोमांच और गुदगुदी दोनों होने लगे। मैंने अपने एक हाथ की
एक अंगुली उसकी मुनिया के छेद में हौले से डाल दी। आह उसकी बुर के कसाव और
गर्मी से मेरी अंगुली ने उसकी बुर के कुंवारेपन को महसूस कर ही लिया। "ईईइ
..... बाबू ... उईईइ ... अम्मा ........ ओह ... रुको ... मुझे ... सु सु
.... आ ... रहा है .... ऊईइ ... ओह ... छोड़ो मुझे.... ओईईइ ... अमाआआ .... अह्ह्ह .... य़ाआअ ..... !!" मैं जानता था वो उत्तेजना और रोमांच के
उच्चतम शिखर पर पहुँच गई है, बस अब वो झड़ने के करीब है। वह उत्तेजना के
मारे कांपने सी लगी थी। उसने अपनी जांघें थोड़ी सी चौड़ी कर ली और मेरे सिर को कस कर पकड़ लिया। मैंने अपनी जीभ ऊपर से नीचे तक उसकी कटार सी पैनी
फांकों पर फिराई और फिर अपनी जीभ को नुकीला बना कर उसके दाने को टटोला।
मेरा अंदाज़ा था कि वो दाना (मदनमणि) अब फूल कर जरूर किशमिश के दाने जितना
हो गया होगा। जैसे ही मैंने उस पर अपनी नुकीली जीभ फिराई उसका शरीर कुछ
अकड़ने सा लगा। उसने मेरे सिर के बालों को जोर से पकड़ लिया और मेरे सिर को अपनी बुर की ओर दबा दिया। मैंने फिर से उसकी बुर को चूसना चालू कर दिया।
उसने 2-3 झटके से खाए और मेरा मुँह फिर से खट्टे मीठे नमकीन से स्वाद वाले
रस से भर गया। वो तो बस आह ... ऊँह... करती ही रह गई। मैं अपने होंठों पर
जुबान फेरता उठ खड़ा हुआ। मैं जैसे ही खड़ा हुआ अंगूर उछल कर मेरे गले से
लिपट गई। उसने मेरे गले में बाहें डाल दी और अपने पंजों के बल होकर मेरे
होंठों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। वो तो इस कदर बावली सी हुई थी कि
बस बेतहाशा मेरे होंठों को चूमे ही जा रही थी। मेरे लंड ने तो चड्डी के
अन्दर कोहराम ही मचा दिया था। अब उस चड्डी को भी निकाल फेंकने का वक़्त आ
गया था। मैंने एक हाथ से अपनी चड्डी निकाल फेंकी और फिर उसे अपनी बाहों में कस लिया। मेरा लंड उसकी बुर के थोड़ा ऊपर जा लगा। जैसे ही मेरा लंड उसकी
बुर के ऊपरी हिस्से से टकराया वो थोड़ा सा उछली। मैंने उसे कमर से पकड़
लिया। मुझे डर था वो कहीं मेरे खड़े लंड का आभास पाकर दूर ना हट जाए पर वो
तो उछल उछल कर मेरी गोद में ही चढ़ गई। उसने अपने पैरों की कैंची सी बना कर मेरी कमर के गिर्द लपेट ली। मेरा लंड उसके नितम्बों की खाई में फंस गया।
वो तो आँखें बंद किये किसी असीम अनंत आनंद की दुनिया में ही गोते लगा रही
थी। मैं उसे अपने से लिपटाए हुए शावर के नीचे आ गया। जैसे ही मैंने शावर
चालू किया पानी की हल्की फुहार हमारे नंगे जिस्म पर पड़ने लगी। मैंने अपना
मुँह थोड़ा सा नीचे किया और उसके एक उरोज को मुँह में ले लिया। उसके चुचूक
तो इतने कड़े ही गए थे जैसे कोई चने का दाना ही हो। मैंने पहले तो अपनी जीभ को गोल गोल घुमाया और फिर उसे किसी हापूस आम की तरह चूसने लगा। मैं सोच
रहा था कि अब अंगूर चुदाई के लिए पूरी तरह तैयार हो गई है। अब इसे गंगा
स्नान करवाने में देर नहीं करनी चाहिए। पहले तो मैं सोच रहा था कि इसे बाहर सोफे पर ले जाकर इसे पवित्र किया जाए। मैं पहले सोफे पर बैठ जाऊँगा और फिर इसे नंगा ही अपनी गोद में बैठा लूँगा। और फिर इसे थोड़ा सा ऊपर करके धीरे
धीरे इसकी बुर में अपना लंड डालूँगा। पर अब मैं सोच रहा था कि इसे उल्टा
घुमा कर दीवार के सहारे खड़ा कर दूँ और पीछे से अपना लंड इसकी कमसिन बुर
में डाल दूँ। पर मैंने अपना इरादा बदल दिया। दरअसल मैं पहले थोड़ा उसके
छोटे छोटे आमों को चूस कर उसे पूरी तरह कामोत्तेजित करके ही आगे बढ़ना
चाहता था। उसने अपना सिर पीछे की ओर झुका सा लिया था। ऐसा करने से उसका
शरीर कमान की तरह तन सा गया और उसके उरोज तीखे हो गए। मैंने एक हाथ से उसकी कमर पकड़ रखी थी और दूसरे हाथ से उसके नितम्बों को सहलाने लगा। अचानक मेरी एक अंगुली उसकी गांड के छेद से जा टकराई। उसकी दरदराई सिलवटों का अहसास
पाते ही मेरे लंड ने तो ठुमके ही लगाने शुरू कर दिए। मैंने अपनी अंगुली
थोड़ी सी अन्दर करने की कोशिश की तो वो तो उछल ही पड़ी। शायद उसे डर था मैं अपनी अंगुली पूरी की पूरी उसकी गांड में डाल दूंगा। वह कसमसाने सी लगी पर
मैंने अपनी गिरफ्त और कड़ी कर ली। मेरी मनसा भांप कर उसने मेरी छाती पर
हौले हौले मुक्के लगाने चालू कर दिए। मैं थोड़ा सा नीचे झुक कर उसको गोद
में लिए ही दीवाल के सहारे गीले फर्श पर बैठ गया। पर वो कहाँ रुकने वाली थी उसने मुझे धक्का सा दिया जिस के कारण मैं गीले फर्श पर लगभग गिर सा पड़ा।
वो अपना गुस्सा निकालने के लिए मेरे ऊपर ही लेट गई और मेरे पेट पर अपनी बुर को रगड़ने लगी। ऐसा करने से मेरा लंड कभी उसकी गांड के छेद से टकराता और
कभी उसके नितम्बों की खाई में रगड़ खाने लगता। उसे तो दोहरा मज़ा आने लगा
था। लगता था उसकी बुर ने एक बार फिर से पानी छोड़ दिया था। उसने नीचे झुक
कर मेरे होंठों को इतना जोर से काटा कि मुझे लगा उनमें खून ही निकल आएगा।
अब उसकी स्वर्ग गुफा में प्रवेश के मुहूर्त का शुभ समय नजदीक आ गया था।
अचानक अंगूर अपने घुटने मोड़ कर थोड़ी सी ऊपर उठी और मेरे लंड को पकड़ कर
मसलने लगी। अब उसने एक हाथ से अपनी बुर की फांकों को चौड़ा किया और मेरे
लंड को अपनी बुर के छेद से लगा लिया। उसने एक जोर का सांस लिया और फिर गच्च से मेरे ऊपर बैठ गई। मेरे लिए तो यह अप्रत्याशित ही था। मेरा लंड उसकी
नर्म नाज़ुक चूत की झिल्ली को फाड़ता हुआ अन्दर समां गया जैसे किसी म्यान
में कटार घुस जाती है। अंगूर की एक हल्की दर्द भरी चीख निकल गई।
"ऊईईइ ...... अम्माआआअ ............"
उसकी
आँखों से आंसू निकालने लगे। मुझे लगा मेरे लंड के चारों ओर कुछ गर्म गर्म
तरल द्रव्य सा लग गया है। जरूर यह तो अंगूर की कमसिन बुर की झिल्ली फटने से
निकला खून ही होगा। कुछ देर वो ऐसे ही आँखें बंद किये चुपचाप मेरे लंड पर
बैठी रही। उसका पूरा शरीर ही काँप रहा था। फिर उसने नीचे होकर मेरे सीने पर
अपना सिर रख दिया। मैं उसकी हालत अच्छी तरह जानता था। वो किसी तरह अपना
दर्द बर्दाश्त करने की कोशिश कर रही थी। मैंने एक हाथ से उसका सिर और दूसरे
हाथ से उसकी पीठ सहलानी शुरू कर दी। "ओह ... अंगूर मेरी रानी, तुम्हें ऐसा
इतनी जल्दी नहीं करना चाहिए था !" मुझे क्या पता था कि इतना दर्द होगा !"
उसने थोड़ा सा उठने की कोशिश की। मुझे लगा अगर एक बार मेरा लंड उसकी बुर से
बाहर निकल गया तो फिर दुबारा वो इसे किसी भी सूरत में अन्दर नहीं डालने
देगी। मेरी तो की गई सारी मेहनत और लम्बी तपस्या ही बेकार चली जायेगी।
मैंने कस कर उसकी कमर पकड़ ली और उसके माथे को चूमने लगा। "ओह ... चलो अब
अन्दर चला ही गया है, बस अब थोड़ी देर में दर्द भी ख़त्म हो जाएगा !" "ओह
... नहीं आप इसे बाहर निकाल लो मुझे बहुत दर्द हो रहा है !" अजीब समस्या
थी। किसी तरह इसे 2-4 मिनट और रोकना ही होगा। अगर 3-4 मिनट यह इसे अन्दर
लिए रुक गई तो बाद में तो इसे भी मज़ा आने लगेगा। बस इसका ध्यान बटाने की
जरूरत है। मैंने उसे पूछा "अंगूर मैंने तुम्हें वो कलाई वाली घड़ी लेकर दी
थी वो तो तुम पहनती ही नहीं ?" "ओह ... वो ... वो मैंने अपनी संदूक में
संभाल कर रख छोड़ी है !" "क्यों ? वो तो तुम्हें बहुत पसंद थी ना ? तुम
पहनती क्यों नहीं ?" "ओह ... आप भी .... अगर दीदी को पता चल गया तो ?"
"ओह्हो ... तुम तो बड़ी सयानी हो गई हो ?" "यह सब आपने ही तो सिखाया है !"
उसके चहरे पर थोड़ी मुस्कान खिल उठी। और फिर उसने शरमा कर अपनी आँखें बंद
कर ली। मैं अपने मकसद में कामयाब हो चुका था। मैंने उसका चेहरा थोड़ा सा
ऊपर उठाया और उसके होंठों को अपने मुँह में लेकर चूसना चालू कर दिया। अब तो
उसकी भी मीठी सीत्कार निकालने लगी थी। उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी
तो मैंने उसे चूसना चालू कर दिया। अब तो कभी मैं अपनी जीभ उसके मुँह में
डाल देता कभी वो। थोड़ी देर बाद उसने अपना एक उरोज फिर से मेरे मुँह से लगा
दिया और मैंने उसके किशमिश के दाने जितने चुचूक चूसना चालू कर दिया।
"अंगूर तुम बहुत खूबसूरत हो !" "आप भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो !" कहते हुए
उसने हौले से अपने नितम्ब थोड़े से ऊपर उठा कर एक धक्का लगा दिया। थोड़ी
देर बाद तो उसने लगातार धक्के लगाने चालू कर दिए। अब तो वो मीठी सीत्कार भी
करने लगी थी। यह तो सच था कि उसकी यह पहली चुदाई थी पर मुझे लगता है वह
चुदाई के बारे में बहुत कुछ जानती है। जरूर उसने किसी ना किसी को चुदाई
करते हुए देखा होगा। "अंगूर अब मज़ा आ रहा है ना ?" "हाँ बाबू ... बहुत
मज़ा आ रहा है। आप ऊपर आकर नहीं करोगे क्या ?" मेरी तो मन मांगी मुराद ही
पूरी हो गई थी। मैंने उसकी कमर पकड़ी और धीरे से पलटी मारते हुए उसे अपने
नीचे कर लिया। अब मैंने भी अपने घुटने मोड़ लिए और कोहनियों के बल हो गया
ताकि मेरा पूरा वजन उस पर नहीं पड़े। अब मैंने हौले हौले धक्के लगाने चालू
कर दिए। उसकी बुर तो अब बिलकुल गीली हो कर रवां हो गई थी। शायद वो इस दौरान
फिर से झड़ गई थी। मैंने उसके उरोजों को फिर से मसलना और चूसना चालू कर
दिया। हमारे शरीर पर ठण्डे ठण्डे पानी की फुहारें पड़ रही थी। और हम दोनों
ही इस दुनिया के उस अनोखे और अलौकिक आनंद में डूबे थे जिसे चुदाई नहीं
प्रेम मिलन कहा जाता है। "बाबू एक बात बताऊँ ?" "क्या ?" "तुम जब मेरी
चूचियों को मसलते हो और चूसते हो तो बड़ा मजा आता है !" "मैं समझा नहीं
कैसे ?" "वो ... वो... एक बार ...?" कहते कहते अंगूर चुप हो गई। "बताओ ना
?" "वो... एक बार जीजू ने मेरे इतने जोर से दबा दिए थे कि मुझे तो 3-4 दिन
तक दर्द होता रहा था ?" "अरे वो कैसे ?" "जब अनार दीदी के बच्चा होने वाला
था तब मैं उनके यहाँ गई थी। मुझे अकेला पाकर जीजू ने मुझे दबोच लिया और
मेरे चूचे दबा दिए। वो तो.... वो तो.... मेरी कच्छी के अन्दर भी हाथ डालना
चाहता था पर मैंने जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया तो अनार दीदी आ गई !"
"फिर ?" "फिर क्या दीदी ने मुझे छुटाया और जीजू को बहुत भला बुरा कहा !"
"ओह ..... ?" "एक नंबर का लुच्चा है वो तो !" "अंगूर उसका दोष नहीं है तुम
हो ही इतनी खूबसूरत !" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और एक धक्का जोर से लगा
दिया। "ऊईईई .... अमाआआ .... जरा धीरे करो ना ?" "अंगूर तुम्हारे उरोज छोटे
जरूर हैं पर बहुत खूबसूरत हैं !" "क्या आपको मोटे मोटे उरोज पसंद हैं ?"
"उ... न .... नहीं ऐसी बात तो नहीं है !" "पता है गौरी मेरे से दो साल छोटी
है पर उसके तो मेरे से भी बड़े हैं !" "अरे वाह उसके इतने बड़े कैसे हो गए
?" "वो... वो कई बार मोती रात को उसके दबाता है और मसलता भी है !" "कौन
मोती ?" "ओह ... आप भी ... वो मेरा छोटा भाई है ना ?"
"ओह ... अच्छा ?" "आप जब इन्हें मसलते हो और इनकी घुंडियों को दांतों से
दबाते हो तो मुझे बहुत अच्छा लगता है !" "हुं..." अब मैंने उसके उरोजों की
घुंडियों को अपने दांतों से दबाना चालू कर दिया तो उसकी मीठी सीत्कारें
निकलने लगी। फिर मैंने उसके उरोजों की घाटी और गले के नीचे से फिर से चूसना
चालू कर दिया तो उसने भी उत्तेजना के मारे सीत्कार करना चालू कर दिया। अब
मैंने अपने पैर सीधे कर दिए तो उसने अपने पैर मेरे कूल्हों के दोनों और
करके ऊपर उठा लिए और मेरी कमर के गिर्द लपेट लिए। अब धक्के लगाने से उसके
नितम्ब नीचे फर्श पर लगने लगे। उसे ज्यादा दर्द ना हो इसलिए मैंने बंद कर
दिए और अपने लंड को उसकी बुर पर रगड़ने लगा। मेरे छोटे छोटे नुकीले झांट
उसकी बुर की फांकों से रगड़ खाते और मेरे लंड का कुछ भाग अन्दर बाहर होते
समय उसकी मदनमणि को भी रगड़ता। मैं जानता था ऐसा करने से वो जल्दी ही फिर
से चरम उत्तेजना के शिखर पर पहुँच जायेगी और उसकी बुर एक बार फिर मीठा
सफ़ेद शहद छोड़ देगी। अब उसने अपने पैरों की कैंची खोल दी और अपनी जांघें
जितना चौड़ी कर सकती थी कर दी। वो तो सीत्कार पर सीत्कार करने लगी थी और
अपने नितम्बों को फिर से उछालने लगी थी। फिर उसने मुझे जोर से अपनी बाहों
में कस लिया। उसकी आह ... उन्ह ... और झटके खाते शरीर और बुर के कसाव को
देख और महसूस करके तो मुझे लगा वो एक बार फिर से झड़ गई है। हमें कोई आधा
घंटा तो हो ही गया था। अब मुझे भी लगने लगा था कि मैं मोक्ष को प्राप्त
होने ही वाला हूँ। मैं अपने अंतिम धक्के उसे चौपाया (घोड़ी) बना कर लगाना
चाहता था पर बाद में मैंने इसे दूसरे राउंड के लिए छोड़ दिया और जोर जोर से
आखिरी धक्के लगाने चालू कर दिए। "ऊईइ ..... आम्माआअ ..... ईईईईईईईईईईईईई
..... " उसने अपनी बाहें मेरी कमर पर कस लीं और मेरे होंठों को मुँह में भर
कर जोर से चूसने लगी। उसका शरीर कुछ अकड़ा और फिर हल्के-हल्के झटके खाते
वो शांत पड़ती चली गई। पर उसकी मीठी सीत्कार अभी भी चालू थी। प्रथम सम्भोग
की तृप्ति और संतुष्टि उसके चहरे और बंद पलकों पर साफ़ झलक रही थी। मैंने
उसे फिर से अपनी बाहों में कस लिया और जैसे ही मैंने 3-4 धक्के लगाए मेरे
वीर्य उसकी कुंवारी चूत में टपकने लगा। मेरी पाठिकाएं शायद सोच रही होंगे
कि बुर के अन्दर मैंने अपना वीर्य क्यों निकाला? अगर अंगूर गर्भवती हो जाती
तो ? आप सही सोच रही है। मैंने भी पहले ऐसा सोचा था। पर आप तो जानती ही
हैं मैं मधुर (मेरी पत्नी) को इतना प्रेम क्यों करता हूँ। उसके पीछे दरअसल
एक कारण है। वो तो मेरे लिए जाने अनजाने में कई बार कुछ ऐसा कर बैठती है कि
मैं तो उसका बदला अगले सात जन्मों तक भी नहीं उतार पाऊंगा। ओह ... आप नहीं
समझेंगी मैं ठीक से समझाता हूँ : मैंने बताया था ना कि मधुर ने पिछले
हफ्ते मुझे अंगूर के लिए माहवारी पैड्स लाने को कहा था ? आप तो जानती ही
हैं कि अगर माहवारी ख़त्म होने के 8-10 दिन तक सुरक्षित काल होता है और इन
दिनों में अगर वीर्य योनी के अन्दर भी निकाल दिया जाए तो गर्भधारण की
संभावना नहीं रहती। ओह ... मैं भी फजूल बातें ले बैठा।
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